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आखिर कौन है जोशीमठ आपदा का जिम्मेदार?

आखिर कौन है जोशीमठ आपदा का जिम्मेदार?

Uttarakhand: चार धाम के प्रमुख धाम बद्रीनाथ के प्रवेश द्वार कहलाने वाले उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशी मठ आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है, बता दें यहां भू -धंसाव के चलते कई मकानों में दरारें आ चुकी हैं। जिन्हें असुरक्षित घोषित किया जा चुका है। 

Joshimath sinking Alarm bells in hill town ringing since 1976 - Joshimath:  धरती चीरकर निकल रहा पानी, क्यों जोशीमठ में पड़ रहीं दरारें; 1976 से बज रही  खतरे की घंटी

 

इसके साथ ही आपको बता दे कि पूरे शहर पर डूबने का खतरा है। यहां एक साल में करीब 500 घरों, दुकानों और होटलों में दरारें आई हैं। इस वजह से यह जगह रहने योग्य भी नहीं बची हैं। शहर के लोगों की आंदोलन की चेतावनी के बाद मंगलवार को प्रशासन ने भू-वैज्ञानिक, इंजीनियर और अफसरों की 5 सदस्यीय टीम ने दरारों की जांच की, और यह भी कहा- कि उत्तराखंड के जोशीमठ में मंगलवार को 2 होटल गिराए जाएंगे। इसके साथ ही यहां मकानों में दरारें आने के बाद एक्सपर्ट टीम ने यह फैसला लिया है, कि लग्जरी होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू में से पहले मलारी इन को गिराया जाएगा।


बता दे कि ये  दोनों होटल 5-6 मंजिला बने हुये हैं। इन्हें गिराने का काम सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) की निगरानी में होगा। SDRF की टीम भी मौके पर मौजूद है। इस मामले पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सुप्रीम कोर्ट ने अर्जेंट हियरिंग की अपील की थी। जिस पर अदालत ने इन्कार करते हुये कहा- कि  16 जनवरी को इस मामले में सुनवाई होगी।

SDRF ने बताया दो होटलों को गिराने का एक्शन प्लान
दो होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू गिराए जाएंगे। SDRF के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा ने कहा कि टीम ने आज होटल मालारी इन गिराने का फैसला किया है। सबसे पहले ऊपरी हिस्सा गिराया जाएगा। दोनों होटल एक-दूसरे के काफी करीब आ चुके हैं। इनके आसपास मकान हैं, इसलिए इन्हें गिराना जरूरी है। होटल और ज्यादा धंसे तो गिर जाएंगे। SDRF तैनात कर दी गई है। लाउडस्पीकर से लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाने को कहा जा रहा है।

आज के बड़े अपडेट्स...

आज लोगों ने जोशीमठ में मार्च निकाला और नारेबाजी की। उनका कहना है कि पुनर्वास ठीक से किया जाए और जो मुआवजा उचित हो।
आज गृह मंत्रालय की एक टीम जोशीमठ आएगी और लैंडस्लाइड में हुए नुकसान का जायजा लेगी।
478 घर और 2 होटलों की पहचान की गई है, जिन्हें गिराया जाना है। अब तक 81 परिवारों को हटाया गया है।

आज के दो बड़े बयान

विरोध प्रदर्शन नागरिक संस्थाओं के लिए एक साधन की तरह है: सुप्रीम कोर्ट

1. सुप्रीम कोर्ट- लोकतांत्रिक संस्थाएं इस मामले को देख रहीं
सुप्रीम कोर्ट ने जोशी मठ पर दायर की गई स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट 16 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- लोकतंत्र के जरिए चुने गए संस्थान है, जो इस मामले को देख रहे हैं। हर मामला हमारे पास लाना जरूरी नहीं।

2. होटल मालिक बोले- नोटिस तो दिया जाना था...
होटल मलारी इन के मालिक ठाकुर सिंह राणा ने कहा, "अगर लोगों के भले के लिए इमारत गिराई जानी है तो मैं सरकार के साथ हूं। फिर चाहे जरा सी ही दरार ही क्यों न आई हो। लेकिन मुझे नोटिस तो दिया जाना था। होटल का मूल्यांकन करते। मैंने ऐसा करने को कहा है। इसके बाद मैं चला जाऊंगा।"

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जोशीमठ को तीन जोन में बांटा गया
राज्य सरकार ने जोशीमठ को तीन जोन में बांटने का फैसला किया है। ये जोन होंगे- डेंजर, बफर और सेफ जोन। डेंजर जोन में ऐसे मकान होंगे जो ज्यादा जर्जर हैं और रहने लायक नहीं हैं। ऐसे मकानों को मैन्युअली गिराया जाएगा, जबकि सेफ जोन में वैसे घर होंगे जिनमें हल्की दरारें हैं और जिसके टूटने की आशंका बेहद कम है। बफर जोन में वो मकान होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं, लेकिन दरारों के बढ़ने का खतरा है। एक्सपर्ट्स की एक टीम दरार वाले मकानों को गिराने की सिफारिश कर चुकी है।

लैंडस्लाइड से हमारा कोई लेना देना नहीं- NTPC
राज्य की पावर प्रोड्यूसर कंपनी NTPC ने कहा है कि तपोवन विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट का जोशीमठ में हो रहे लैंडस्लाइड से कोई लेना-देना नहीं है। बता दें कि जोशीमठ लैंडस्लाइड के लिए NTPC के एक हाइड्रो प्रोजेक्ट को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि NTPC के हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए सुरंग खोदी गई, जिस वजह से शहर धंस रहा है। हालांकि NTPC ने इन सब बातों को खारिज कर दिया है।

जोशीमठ भू-धंसाव : इस स्थिति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार? - Himantar -  Dedicated to the Himalayan Concerns | हिमांतर - हिमालयी सरोकारों को समर्पित

जोशीमठ के मकानों पर रेड क्रॉस
जोशीमठ के सिंधी गांधीनगर और मनोहर बाग एरिया डेंजर जोन में हैं। यहां के मकानों पर रेड क्रॉस लगाए गए हैं। प्रशासन ने इन मकानों को रहने लायक नहीं बताया है। चमोली DM हिमांशु खुराना ने बताया कि जोशीमठ और आसपास के इलाकों में कंस्ट्रक्शन बैन कर दिया गया है।

बता दे कि यहां 603 घरों में दरारें आई हैं। ज्यादातर लोग डर के चलते घर के बाहर ही रह रहे हैं। किराएदार भी लैंड स्लाइड के डर से घर छोड़कर चले गए हैं। अभी तक 70 परिवारों को वहां से हटाया गया है। बाकियों को हटाने का काम चल रहा है। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे रिलीफ कैंप में चले जाएं।

उत्तराखंड के जोशीमठ में पहाड़ धंस रहे हैं। जोशीमठ और मशहूर स्की रिसोर्ट औली के बीच देश के सबसे लंबे 4.15 किमी के रोप-वे पर खतरा मंडरा रहा है। रोप-वे के टावरों के पास भूस्खलन शुरू हो चुका है। पहाड़ खिसकने से डेढ़ सौ से ज्यादा रिहायशी मकानों में दरारें आ गई हैं। जोशीमठ में 36 परिवारों को शिफ्ट किया गया है। 

जोशीमठ में बने 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी हैं। अब तक 66 परिवार पलायन कर चुके हैं। सुरक्षा के मद्देनजर 38 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। जमीन धंसने के बाद जोशीमठ में एशिया का सबसे लंबा रोपवे बंद करने का फैसला लिया गया है। 

उत्तराखंड के जोशीमठ में एक बड़ा अस्थायी पुनर्वास केंद्र बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को हाई लेवल मीटिंग में कहा कि सुरक्षित जगह पर यह पुनर्वास केंद्र बनाया जाए। साथ ही, उन्होंने डेंजर जोन को तत्काल खाली कराने के लिए कहा। 

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जोशीमठ के हालात पर सरकार और एक्सपर्ट...  4 पॉइंट


1. PM मोदी ने CM से पूछा- कितने लोग प्रभावित है
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को फोन कर जानकारी ली। धामी ने बताया कि PM ने कई तरह के प्रश्न पूछे जैसे कितने लोग इससे प्रभावित हुए हैं, कितना नुकसान हुआ, लोगों के विस्थापन के लिए क्या किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने जोशीमठ को बचाने के लिए हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है।

2. एक्सपर्ट बोले- लैंडस्लाइड का रिस्क बड़ा
PMO से मीटिंग के दौरान एक्सपर्ट ने जोशीमठ में बड़े रिस्क की आशंका जाहिर की गई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्लास्टिंग और शहर के नीचे सुरंग बनाने की वजह से पहाड़ धंस रहे हैं। अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो शहर मलबे में बदल सकता है। सुखवीर सिंह संधू ने कहा कि हमारी कोशिश है कि बिना किसी नुकसान के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट कराया जाए। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक यह पता लगाने में लगे हैं कि लैंडस्लाइड को कैसे रोका जा सकता है। जल्द ही समाधान ढूंढ लिया जाएगा। इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाने शुरू कर दिए गए हैं, हालांकि अभी के हालात को देखते हुए लोगों को डेंजर जोन से निकालना ज्यादा जरूरी है।

3. सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, शंकराचार्य ने PIL दाखिल की
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल की है। उन्होंने कहा- पिछले एक साल से जमीन धंसने के संकेत मिल रहे थे। सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया गया। ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक नगर जोशीमठ खतरे में हैं।

4. NTPC का बयान- हमारी सुरंग जोशीमठ से गुजरती ही नहीं
एनटीपीसी ने एक बयान में कहा- “एनटीपीसी की बनाई गई सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजरती है। यह टनल एक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) द्वारा खोदी गई है और वर्तमान में कोई ब्लास्टिंग नहीं की जा रही है।"

5. जब छत गिर जाए तब आना... SDM बोलीं- ऐसा कुछ कहा ही नहीं
जोशीमठ के मनोहर वार्ड के लोगों ने SDM कुमकुम जोशी के पुराने बयान जमकर बवाल मचाया। कुमकुम पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लोगों ने एसडीएम को उनका बयान याद दिलाया कि उन्होंने कहा था जब छत गिर जाए तो आ जाना 5 हजार रुपए मिलेंगे। हालांकि एसडीएम ने ऐसे किसी भी बयान से इंकार किया है। वे बोलीं- ऐसा कुछ मैंने कहा ही नहीं।

Uttarakhand Chief Minister Pushkar Singh Dhami reached Joshimath  ।मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहुंचे जोशीमठ, प्रभावित क्षेत्रों का लिया  जायजा - India TV Hindi

CM धामी जोशीमठ पहुंचे, बिलखकर रोए लोग
लोगों का दर्द बांटने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रविवार को जोशीमठ पहुंचे। लोग उनके सामने बिलखकर रोने लगे। महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। वे बोलीं- हमारी आंखों के सामने ही हमारी दुनिया उजड़ रही है, इसे बचा लीजिए। हमें अपने घरों में रहने में डर लग रहा है।

 

13 साल पहले दरार आने की शुरुआत, जानिए ये इतना सेंसटिव क्यों...7 पॉइंट

1. जोशीमठ ग्लेशियर के मलबे पर बसा- रिपोर्ट

जोशीमठ के मकानों में दरार आने की शुरुआत 13 साल पहले हो गई थी। हिमालय के ईको सेंसेटिव जोन में मौजूद जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी तक जाने का एंट्री पॉइंट माना जाता है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने अपनी रिसर्च में कहा था- उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांव ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हैं। जहां आज बसाहट है, वहां कभी ग्लेशियर थे। इन ग्लेशियरों के ऊपर लाखों टन चट्टानें और मिट्टी जम जाती है। लाखों साल बाद ग्लेशियर की बर्फ पिघलती है और मिट्टी पहाड़ बन जाती है।

2. एमसी मिश्रा कमेटी ने कहा था- जोशीमठ के नीचे मिट्टी-पत्थर के ढेर
1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि जोशीमठ का इलाका प्राचीन भूस्सखलन क्षेत्र में आता है। यह शहर पहाड़ से टूटकर आए बड़े टुकड़ों और मिट्टी के ढेर पर बसा है, जो बेहद अस्थिर है। कमेटी ने इस इलाके में ढलानों पर खुदाई या ब्लास्टिंग कर कोई बड़ा पत्थर न हटाने की सिफारिश की थी। साथ ही कहा था कि जोशीमठ के पांच किलोमीटर के दायरे में किसी तरह का कंस्ट्रक्शन मटेरियल डंप न किया जाए।

3. हिमालय में पैरा-ग्लेशियल जोन की विंटर स्नो लाइन पर बसाहट
जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। वैज्ञानिक भाषा में ऐसी जगह को डिस-इक्विलिब्रियम (disequilibrium) कहा जाता है। इसके मायने हैं- ऐसी जगह जहां जमीन स्थिर नहीं है और जिसका संतुलन नहीं बन पाया है।

एक वजह यह भी है कि जोशीमठ विंटर स्नो लाइन की ऊंचाई से भी ऊपर है। विंटर स्नो लाइन या शीत हिमरेखा वह सीमा होती है, जहां तक सर्दियों में बर्फ रहती है। ऐसे में भी बर्फ के ऊपर मलबा जमा होते रहने पर वहां मोरेन बन जाता है।

4. शहर की आबादी बढ़ जाने से दो हजार फीट घट गया फॉरेस्ट कवर
मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि डेवलपमेंट ने जोशीमठ इलाके में मौजूद रहे जंगल को तबाह कर दिया है। पहाड़ों की पथरीली ढलानें खाली और बिना पेड़ों के रह गई हैं। जोशीमठ करीब 6 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा है, लेकिन बसाहट बढ़ने से फॉरेस्ट कवर 8 हजार फीट तक पीछे खिसक गया है। पेड़ों की कमी से कटाव और लैंड स्लाइडिंग बढ़ी है। इस दौरान खिसकने वाले बड़े पत्थरों को रोकने के लिए जंगल बचे ही नहीं हैं।

5. ब्लास्ट और कंस्ट्रक्शन की वजह से मोरेन के खिसकने में इजाफा
वाडिया इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि मोरेन पहाड़ का एक तय वक्त के बाद खिसकना तय होता है। हालांकि, अंधाधुंध ब्लास्ट्स और बेतरतीब कंस्ट्रक्शन ने इसकी रफ्तार में इजाफा कर दिया है। वहीं, इसके वैज्ञानिकों ने कहा था कि जोशीमठ शहर के नीचे एक तरफ धौली गंगा और दूसरी तरफ अलकनंदा नदी है। दोनों नदियों की वजह से पहाड़ के कटाव ने भी पहाड़ को कमजोर किया है।

6. प्रोजेक्ट्स पर रोक के बावजूद बड़ी मशीनें पहाड़ खोद रहीं
NTPC के हाइडल प्रोजेक्ट की 16 किमी लंबी सुरंग जोशीमठ के नीचे से गुजर रही है। यह सुरंग मलबा घुस जाने के बाद बंद है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सुरंग में गैस बनने पर इससे बना दबाव मिट्टी को अस्थिर कर रही है। इस वजह से जमीन धंस रही है।

हालात बिगड़ने पर सरकार ने NTPC के हाइडल प्रोजेक्ट की सुरंग और चार धाम ऑल-वेदर रोड (हेलंग-मारवाड़ी बाइपास) का काम रोकने का आदेश दिया था, लेकिन कागजों पर जहां काम बंद है, लेकिन मौके पर बड़ी मशीनें लगातार पहाड़ खोद रही हैं।

तुरंत हालात नहीं संभले तो जोशीमठ का वजूद मिट सकता है
भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ अलकनंदा नदी की ओर खिसक रहा है। इसकी जद में सेना की ब्रिगेड, गढ़वाल स्काउट्स और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की बटालियन भी है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि तुरंत असरदार कदम नहीं उठाए गए, तो बड़ी प्राकृतिक आपदा आ सकती है। इसमें जोशीमठ का वजूद ही मिट सकता है।

 


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