नेहरू की 'छड़ी' से क्या करने वाले हैं पीएम मोदी? जानें 'राजदंड' का इतिहास...
नेहरू की 'छड़ी' से क्या करने वाले हैं पीएम मोदी? जानें 'राजदंड' का इतिहास...
भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया।जिसमें इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जायेंगें। जुसके चलते ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य (बाद में जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। उसके बाद इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया।इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। नेपाल और भूटान इस दौरान स्वतन्त्र राज्य थे और इस बँटवारे से प्रभावित नहीं हुए। https://www.primetvindia.com/Meteorological-Department-has-issued-yellow-alert-in-75-districts- सेंगोल भारत का एक प्राचीन स्वर्ण राजदण्ड है। सेंगोल का इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है।जिसमें सेंगोल जिसे हस्तान्तरित किया जाता है, उससे न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत गणराज्य के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसे सौंप दिया था।बता दें,बाद में इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रख दिया गया था।जिसमें बता दें,सेंगोल सोने और चांदी से बना है और इसके शीर्ष पर भगवान शिव के वाहन नंदी विराजमान हैं। बताते चलें,असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने गुरुवार को आरोप लगाया कि वामपंथियों ने सेंगोल की उपेक्षा कर, हिंदू परंपराओं की उपेक्षा की और सेंगोल को एक चलने वाली छड़ी के रूप में प्रदर्शित किया। बता दें कि 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन की इमारत का उद्घाटन करेंगे। इस दौरान मदुरै के विद्वानों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल दिया जाएगा। यह राजदंड है, जो सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर तैयारी जोरों पर चल रही हैं। इस बीच मदुरै अधीनम के प्रमुख पुजारी, हरिहर देसिका स्वामीगल ने कहा - कि अगले साल 2024 में भी नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में लौटना चाहिए. स्वामीगल नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी को ‘सेंगोल’ पेश करेंगे। मदुरै अधीनम के 293वें प्रधान पुजारी रविवार 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी को राजदंड ‘सेंगोल’ प्रदान करेंगे।स्वामीगल ने कहा- कि पीएम मोदी को विश्व स्तर पर सराहना मिल रही है और देशवासियों को उन पर गर्व हैं। हिन्दू समुदाय का इतिहास सबसे प्राचीन है। इस धर्म को वेदकाल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक (तु वेदस्य मुखं) परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सनातन धर्म में 4 वेद, 6 शास्त्र और 18 पुराणों के बारे में बताया गया है। असम के मुख्यमंत्री ने कहा- कि 'सेंगोल हमारी आजादी का अभिन्न अंग है लेकिन वामपंथियों ने इसे चलने वाली छड़ी के रूप में प्रदर्शित किया और म्यूजियम के कोने में रख दिया जबकि पंडित नेहरू की देश की आजादी में अहम भूमिका थी। यह उदाहरण है कि किस तरह एक पूरा इको सिस्टम है, जो प्राचीन भारत और हिंदू परंपराओं का महिमामंडन करने वाले किसी भी कार्यक्रम को सेंसर करने का काम करता है।' आपको बता दें, हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी देश के अधिकतर लोग इस बात से वाकिफ नहीं हैं, कि आजादी के समय सत्ता के हस्तांतरण के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल दिया गया था। तमिलनाडु के थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के पुजारियों द्वारा पंडित नेहरू को यह सेंगोल दिया गया था।लेकिन अब वही सेंगोल 28 मई को मदुरै के विद्वानों द्वारा पीएम मोदी को सौंपा जाएगा। बता दें,आजादी के अमृत काल के राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने सेंगोल को अपनाने का फैसला किया है। यह सेंगोल लोकसभा में सभापति के आसन के नजदीक स्थापित किया जाएगा और खास मौकों पर इसे बाहर निकाला जाएगा। भारत के इतिहास के सबसे शक्तिशाली और समृद्ध राजवंशों में से एक चोल साम्राज्य में सत्ता हस्तांतरण के लिए सेंगोल का इस्तेमाल किया जाता था। बता दें,वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल किया था: "ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिए?" इस प्रश्न ने नेहरू को वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी (राजाजी) से परामर्श करने के लिए प्रेरित किया। राजाजी ने चोल कालीन समारोह का प्रस्ताव दिया जहां एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण उच्च पुरोहितों की उपस्थिति में पवित्रता और आशीर्वाद के साथ पूरा किया जाता था। राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठ - थिरुववादुथुराई अधीनम से संपर्क किया। थिरुववादुथुराई अधीनम 500 वर्ष से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 शाखा मठों को संचालित करता है। अधीनम के नेता ने तुरंत पांच फीट लंबाई के 'सेंगोल' तो तैयार करने के लिए चेन्नई में सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया।ये भी पढ़े...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृतकाल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का निर्णय लिया। जिसके बाद संसद का नया भवन उसी घटना का गवाह बनेगा, जब अधीनम् (मठ के महंत) उसी समारोह (1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल दिया गया था) को दोहराएंगे और PM नरेंद्र मोदी को सेंगोल प्रदान करेंगे।साथ ही साथ यह भी बताते चलें,कि देश की आजादी के समय 14 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने सत्ता के हस्तांतरण के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल दिया था। अब वही सेंगोल 28 मई को मदुरै के विद्वानों द्वारा पीएम मोदी को सौंपा जाएगा।हमें उन पर गर्वः स्वामीगल...
स्वामीगल ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए, “पीएम नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जिन्हें दुनिया भर में तारीफ मिली। वह सभी लोगों के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।अगले साल 2024 में उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनना हैं। हम सभी उन पर बहुत गर्व महसूस कर रहे हैं क्योंकि दुनियाभर के नेता हमारे प्रधानमंत्री की सराहना कर रहे हैं।”वामपंथियों पर हिंदू परंपरा...
28 मई को पीएम मोदी करेंगे स्वीकार...
चोल काल के दौरान ऐसे ही राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तांतरण को दर्शाने के लिए किया जाता था। उस समय पुराना राजा नए राजा को इसे सौंपता था।राजदंड सौंपने के दौरान 7वीं शताब्दी के तमिल संत थिरुग्नाना संबंदर द्वारा रचित एक विशेष गीत का गायन भी किया जाता था।कुछ इतिहासकार मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य[5] में भी सेंगोल को प्रयोग किए जाने की बात कहते हैं।