Prime Chaupal:कागजों पर ग्राम प्रधान का नाम कमला देवी है लेकिन लोगों की जुबान पर मनोज रटा हुआ है संदेश साफ है कि,महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटने वाली इस सरकार में केवल कागजों पर ही महिला सशक्तिकरण दिखाई दे रहा है।हकीकत में कहानी कुछ और है।पत्नी के नाम पर चुनाव लड़कर कागजों में उसे प्रधान बनाकर पति खुद प्रधानी की कमान संभाले हुए हैं लेकिन प्रधान पति के शासनकाल में भी गांव के हालात ऐसे हैं कि लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।कच्चे मकानों में रहने के लिए मजबूर लोगों को प्रधान की तरफ से कुछ मिलता है तो केवल झूठा दिलासा।ये तस्वीरें हैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे मलिहाबाद विकासखंड के खड़ता ग्राम पंचायत की और यही है ‘खड़ता गांव का उखड़ता सिस्टम’।

छप्पर,तिरपाल के सहारे सिर ढकने को मजबूर ग्रामीण
छप्पर,तिरपाल और कच्चे मकानों में रहने को मजबूर लोग गांव के विकास की दास्तान बयां कर रहे हैं।जहां एक तरफ छप्परों में रहने को मजबूर लोग,कूड़े के ढेर और गंदगी से बजबजाती नालियां,गांव के विकास के दावों की पोल खोल रहे हैं।वहीं दूसरी तरफ गांव के विकास की जिम्मेदारी पाए हुए सियासतदानों के आशियाने चौचक नजर आते हैं।जरूरतमंद लोगों को मिलती है तो केवल झूठी आस।पड़ताल के नाम पर सचिव लोगों के नाम लिखकर ले जाते हैं पर उसका अंश मात्र भी असर गांव में देखने को नहीं मिलता है।गांव वालों के हिस्से में आता है महज इंतजार और इंतजार के बावजूद भी योजनाओं से महरूम रहने की निराशा।

विकास के नाम पर गांवों में लोगों को मिल रही केवल दिलासा
गांव के विकास की असलियत सामने लाने के लक्ष्य के साथ गांव के अंदर पहुंची हमारी टीम को देख लोग एक उम्मीद के साथ अपनी समस्याओं की फरियाद सुना रहे है।सिर के ऊपर छत पाने की उम्मीद से अपने कच्चे मकानों और छप्परों की भी नुमाइश कर रहे हैं मन में बस एक आस है कि,बात सरकार के कानों तक पहुंचे और उनके कायाकल्प की भी कोई राह बने देखने वाली बात होगी कि,गांव में सरकार के विकास की गाड़ी कब तक पहुंचती है और जिन गांवों को विकसित करने का केंद्र और राज्य सरकार दावा करती हैं आखिर कब इन गांवों में विकास की तस्वीर दिखाई देगी इसका ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों को अब भी इंतजार है।