Surtsey Island: समुद्र से उभरा नया द्वीप, जानिए इंसानी दखलंदाजी के बिना प्रकृति कैसे काम करती है!

नवंबर 1963 में समुद्र के नीचे ज्वालामुखी फटने से सर्टसेय द्वीप बना। यह मानव-मुक्त द्वीप जीवन के विकास पर दुर्लभ शोध का केंद्र है। पक्षियों के मल से मिट्टी बनी, जिसने वनस्पति क्रांति लाई। वैज्ञानिक चेतावनी: यह द्वीप सदी के अंत तक सिकुड़ जाएगा।

Chandan Das
Surtsey द्वीप,

Surtsey Island:  बात नवंबर 1963 की एक ठंडी सुबह, आइसलैंड के दक्षिणी तट पर मछुआरे जब रोज़ की तरह मछली पकड़ने निकले, तो उन्हें अटलांटिक महासागर में कुछ अजीब होता दिखा काले धुएं का घना स्तंभ आकाश की ओर उठ रहा था। उन्हें लगा कोई जहाज जल रहा है, लेकिन रेडियो पर किसी आपात स्थिति की सूचना नहीं थी। जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि समंदर के नीचे ज्वालामुखी फूट पड़ा है।

यह विस्फोट अगले कुछ हफ्तों में एक नए द्वीप के रूप में सामने आया, जो समुद्र की सतह से उठकर पहले 10 मीटर, फिर 40 मीटर और कुछ महीनों में 174 मीटर तक ऊंचा हो गया। यह नया द्वीप 1 किलोमीटर लंबा था और इसका नाम पड़ा ‘सर्टसेय’ (Surtsey) नॉर्स पौराणिक कथाओं के अग्नि दानव ‘सुरत्र’ के नाम पर।

सर्टसेय का वैज्ञानिक और पारिस्थितिक महत्व

सर्टसेय केवल एक भूगर्भीय घटना नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए एक अनमोल प्रयोगशाला बन गया। ज्वालामुखीय द्वीपों का बनना दुर्लभ है और उनका टिकना उससे भी अधिक। अधिकतर नए द्वीप समुद्री लहरों से नष्ट हो जाते हैं, लेकिन सर्टसेय टिक गया।आइसलैंड की भूगर्भ विशेषज्ञ ओल्गा कोलब्रून विल्मुंडरडॉत्तिर के अनुसार, “ऐसी घटनाएं 3,000 से 5,000 वर्षों में एक बार होती हैं। यह हमारे लिए एक अनोखा अवसर था कि हम बिना मानव हस्तक्षेप के जीवन के विकास को देखें।”

संरक्षित प्रयोगशाला: कोई मानवीय गतिविधि नहीं

1965 में आइसलैंड सरकार ने सर्टसेय को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया। केवल वैज्ञानिकों और कुछ पत्रकारों को ही विशेष अनुमति के साथ वहां जाने की अनुमति मिली। कोई निर्माण, मवेशी या पर्यटक वहां नहीं जा सकते। उद्देश्य साफ था प्रकृति को उसके हाल पर छोड़ देना।उसी वर्ष, वहां पहला पौधा उगा समुद्र से बहकर आया हुआ सी रॉकेट का पौधा। अनुमान था कि पहले शैवाल और काई आएंगे, लेकिन प्रकृति ने सीधा पौधों से शुरुआत की। यह चौंकाने वाला लेकिन शिक्षाप्रद था।

पक्षियों और समुद्री जीवों ने रचा नया जीवन चक्र

1980 के दशक में सर्टसेय पर काले पीठ वाले गलबल पक्षी बसे। उनके मल-मूत्र से भूमि में पोषक तत्वों की वृद्धि हुई, जिससे पौधों का विस्तार हुआ। दिलचस्प बात यह रही कि पौधों के बीज मांसल फलों से नहीं, बल्कि सूखे बीजों से आए यह धारणा को बदलने वाली खोज थी।बाद में, ग्रे सील्स भी इस द्वीप पर आने लगे आराम करने, त्वचा बदलने और बच्चों को जन्म देने के लिए। उनके द्वारा छोड़े गए जैविक तत्वों ने मिट्टी को और उपजाऊ बनाया। समुद्री पक्षी, कीड़े, शैवाल, घास और फूल धीरे-धीरे एक पूरा पारिस्थितिक तंत्र विकसित हो गया।

जैव विविधता, लेकिन समय सीमित

हालांकि सर्टसेय पर जीवन फला-फूला, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि यह स्थिति स्थायी नहीं है। समुद्र की लहरें द्वीप को धीरे-धीरे काट रही हैं। अनुमान है कि 21वीं सदी के अंत तक इसका एक बड़ा हिस्सा समुद्र में समा जाएगा, और केवल एक खड़ी चट्टान बचेगी।परंतु जो ज्ञान और प्रेरणा यह द्वीप दे रहा है, वह अमूल्य है।

पर्यावरणीय शिक्षा का प्रतीक

सर्टसेय का संदेश स्पष्ट है “जहां इंसान प्रकृति से हट जाता है, वहां जीवन अपनी राह खुद बना लेता है।”प्राकृतिक पुनरुद्धार की यह यात्रा हमें बताती है कि अगर हम प्रदूषित या नष्ट हो चुके पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करना चाहते हैं, तो हमें बस प्रकृति को समय और स्थान देना होगा।ओल्गा कहती हैं, “जब मैं सर्टसेय पर होती हूं, तो वहां केवल पक्षियों की आवाज़ सुनाई देती है। कोई मोबाइल, सड़क या इमारत नहीं – बस शुद्ध प्रकृति। यह मानवता के लिए एक सीख है।”

प्रकृति को समय दें, वह पुनर्जीवित हो सकती है

सर्टसेय एक जीवंत प्रमाण है कि जीवन पुनः कैसे आरंभ हो सकता है बिना मानवीय हस्तक्षेप, बिना कृत्रिम सहायता के। यह हमें पर्यावरण संरक्षण और स्थायी विकास की ओर प्रेरित करता है।आज, जब जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्रदूषण जैसी समस्याएं चरम पर हैं, सर्टसेय हमें एक नया दृष्टिकोण देता है प्रकृति को उसका स्पेस दीजिए, वह चमत्कार कर सकती है।

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