Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर जिले में एनडीए खासकर बीजेपी को दो अहम सीटों पर भीतरघात का सामना करना पड़ रहा है। कुढ़नी और पारु सीट से भाजपा के पुराने नेताओं ने पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में ताल ठोक दी है।
कुढ़नी में वैश्य वोटों पर संघर्ष
कुढ़नी सीट से बीजेपी ने वर्तमान विधायक और बिहार सरकार में मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता को फिर से मैदान में उतारा है। लेकिन इसी सीट से पार्टी के अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश मंत्री धर्मेंद्र कुमार उर्फ अबोध साह ने पार्टी विरोध करते हुए निर्दलीय पर्चा भर दिया है। धर्मेंद्र कुमार भी वैश्य समाज से आते हैं और उनका स्थानीय स्तर पर मजबूत जनाधार है।
गौरतलब है कि केदार गुप्ता पिछली बार उपचुनाव में बेहद कम अंतर से जीत दर्ज कर पाए थे। ऐसे में धर्मेंद्र कुमार की बगावत से वैश्य वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा है, जिससे आरजेडी प्रत्याशी सुनील कुमार सुमन उर्फ बबलू कुशवाहा को सीधा फायदा मिल सकता है।
पारु में अशोक सिंह की बगावत
पारु विधानसभा सीट पर बीजेपी को उससे भी बड़ा झटका तब लगा जब चार बार के पूर्व विधायक अशोक सिंह ने निर्दलीय पर्चा भर दिया। राजपूत बहुल इस इलाके में अशोक सिंह की मजबूत पकड़ है। बीजेपी ने इस बार पारु सीट सहयोगी पार्टी लोजपा (रामविलास) के लिए छोड़ी है, जहां से मदन सिंह को टिकट मिला है।
लेकिन अशोक सिंह की बगावत ने लोजपा आर और एनडीए की गणित बिगाड़ दी है। माना जा रहा है कि अगर अशोक सिंह राजपूत वोटों को अपनी ओर खींचने में सफल होते हैं तो एनडीए प्रत्याशी के लिए सीट बचाना मुश्किल हो सकता है। इस सीट पर आरजेडी ने शंकर प्रसाद यादव को मैदान में उतारा है।
अन्य सीटों पर भी मुकाबला रोचक
मुज़फ़्फ़रपुर जिले की कुल 11 विधानसभा सीटों में से बीजेपी और जेडीयू ने छह पर प्रत्याशी उतारे हैं, वहीं लोजपा आर ने दो सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। दूसरी ओर, आरजेडी, कांग्रेस और वीआईपी पार्टी ने भी अपने-अपने प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। इस बीच जनसुराज के संजय केजरीवाल और AIMIM गठबंधन से प्रवीण कुमार ने भी क्रमशः मुज़फ़्फ़रपुर और सकरा सीट से निर्दलीय या नए गठबंधन के तहत नामांकन किया है, जिससे कई सीटों पर वोट कटवा फैक्टर भी अहम भूमिका निभा सकता है।
एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती अब अपने ही बागी नेताओं को मनाने की है। कुढ़नी और पारु जैसी सीटें जहां पार्टी के पुराने चेहरों का जनाधार मजबूत है, वहां बगावत एनडीए के लिए भारी पड़ सकती है। पहले चरण के मतदान से पहले इन सीटों पर होने वाला घटनाक्रम आने वाले चुनावी नतीजों को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है।
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