ग्वालियर
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने दुष्कर्म पीड़िता की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए पुलिस अधिकारियों द्वारा किए गए उपहास, दुर्व्यवहार और एफआईआर दर्ज न किए जाने को अत्यंत गंभीर मामला माना है। कोर्ट ने ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक को संबंधित थाना प्रभारी और डीएसपी के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए के निर्देश दिए हैं।
इसके साथ ही मामले की विवेचना को पुलिस थाना गिरवाई से हटाकर किसी अन्य अधिकारी से कराने को कहा है। अदालत ने पीड़िता के परिवार को सुरक्षा उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि यदि अधिकारी अपने विधिक दायित्वों का पालन नहीं करते, विशेषकर यौन अपराधों के मामलों में सहानुभूति नहीं दिखाते, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
एफआईआर दर्ज करने से इन्कार कर दिया
दुष्कर्म पीड़िता ने हाई कोर्ट में प्रस्तुत अपनी याचिका में कहा कि 26 अप्रैल 2025 को वह अपने साथ हुए दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए गिरवाई पुलिस थाना पहुंची थी। उस समय थाना प्रभारी सुरेंद्रनाथ यादव और डीएसपी ग्रामीण चंद्रभान सिंह चिडार मौजूद थे। लेकिन दोनों अधिकारियों ने न सिर्फ उसका मजाक उड़ाया बल्कि उसे बेहद लज्जित किया, दुर्व्यवहार किया और एफआईआर दर्ज करने से इन्कार कर दिया।
गिरवाई थाने में दर्ज हुई एफआईआर
पीड़िता ने बताया कि वह रात दो बजे तक अपने स्वजन के साथ थाने में बैठी रही, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की गई। इसके बजाय उसकी शिकायत की मात्र प्राप्ति देकर उसे थाने से भगा दिया गया। घटना से आहत पीड़ित के स्वजन ने तत्काल मोबाइल से पुलिस अधीक्षक और आईजी ग्वालियर को पूरे प्रकरण की जानकारी दी।
अगले दिन पीड़िता ने खुद पुलिस अधीक्षक और आईजी से मुलाकात कर पूरी घटना बताई। दोनों वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों के बाद, तीसरे दिन यानी 28 अप्रैल 2025 को पुलिस थाना गिरवाई में दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज की गई।

