Nirmala Sitharaman:लोकसभा ने मंगलवार को बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 को पारित कर दिया, जिससे भारतीय बैंकिंग प्रणाली में कई महत्वपूर्ण बदलाव होंगे। इस विधेयक के लागू होने से बैंकिंग सेवाओं को और भी अधिक सुगम और ग्राहकों के लिए सुविधाजनक बनाया जाएगा। इस विधेयक का सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब बैंक खाताधारक अपने खाते या एफडी के लिए चार नॉमिनी नामित कर सकते हैं, जबकि पहले यह केवल एक नॉमिनी तक सीमित था। यह कदम खासतौर पर कोविड-19 महामारी के दौरान खाताधारकों की मौत के बाद पैसे के बंटवारे में उत्पन्न हुई दिक्कतों को देखते हुए उठाया गया है। इस बदलाव से परिवारों को पैसों के वितरण में आसानी होगी और कानूनी प्रक्रिया में भी देरी कम होगी।
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नॉमिनी बनाने के विकल्प

इस विधेयक के तहत नॉमिनी बनाने के दो विकल्प दिए गए हैं। पहला विकल्प है कि सभी नॉमिनी को एक समान हिस्सेदारी दी जाए, यानी हर नॉमिनी को बराबरी का हिस्सा मिले। दूसरा विकल्प है कि नॉमिनी को क्रमवार रखा जाए, यानी एक के बाद एक को पैसा मिलेगा। यह विकल्प खाताधारक पर निर्भर करेगा कि वह कौन सा तरीका अपनाना चाहता है। यह बदलाव ग्राहकों को अधिक लचीलापन प्रदान करेगा और उनके परिवार को कठिन परिस्थितियों में आसानी से निपटने का मौका मिलेगा।
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निदेशक पदों के लिए ‘पर्याप्त हित’ की नई परिभाषा
विधेयक में एक और अहम बदलाव निदेशकों के पदों के लिए ‘पर्याप्त हित’ की परिभाषा को नए सिरे से परिभाषित करने का प्रस्ताव है। इससे मौजूदा पांच लाख रुपये की सीमा को बढ़ाकर दो करोड़ रुपये तक किया जा सकता है, जो लगभग छह दशक पहले तय की गई थी। यह बदलाव बैंकों में निदेशकों की भूमिका और उनके कामकाजी हितों को बेहतर तरीके से परिभाषित करेगा।
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वित्त मंत्री की स्पष्टीकरण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस विधेयक को संसद के निचले सदन में पेश किया और इस पर चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि जमाकर्ताओं को अब दो विकल्प मिलेंगे—क्रमिक नामांकन या एक साथ सभी नॉमिनी के हिस्से तय करना। इसके अलावा, लॉकर सुविधा लेने वाले ग्राहकों के लिए केवल क्रमिक नामांकन का विकल्प होगा।

सीतारमण ने यह भी कहा कि 2014 से सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों को स्थिर और सुरक्षित रखने के लिए बेहद सतर्कता बरती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आज भारतीय बैंकों की स्थिति बेहतर हो चुकी है और वे अब बाजार में जाकर बॉंड और लोन जुटा सकते हैं, जिससे उनका कारोबार बेहतर तरीके से चल सकता है।
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सहकारी बैंकों में बदलाव
विधेयक के तहत सहकारी बैंकों के निदेशकों (चेयरमैन और पूर्णकालिक निदेशकों को छोड़कर) के कार्यकाल को आठ साल से बढ़ाकर 10 साल करने का प्रस्ताव है। यह संशोधन संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुरूप किया गया है। इसके अलावा, विधेयक के पारित होने के बाद केंद्रीय सहकारी बैंक के निदेशक को राज्य सहकारी बैंक के निदेशक मंडल में नियुक्त किए जाने की मंजूरी मिल जाएगी।
बैंकों को अधिक स्वतंत्रता और वित्तीय आंकड़ों की सूचना

इस विधेयक में बैंकों को वित्तीय आंकड़ों की सूचना देने की तारीखों को बदलने का प्रस्ताव भी है। अब बैंकों को हर महीने के 15वें और आखिरी तारीख को यह जानकारी देनी होगी, जबकि वर्तमान में यह सूचना हर महीने के दूसरे और चौथे शुक्रवार को भेजनी होती है। इसके अलावा, बैंकों को वैधानिक लेखा परीक्षकों के पारिश्रमिक तय करने में अधिक स्वतंत्रता दी जाएगी।