UP Caste Politics: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा जातिगत भेदभाव खत्म करने के उद्देश्य से लिए गए अहम फैसले पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। अखिलेश ने इस फैसले को “सतही” करार देते हुए सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं और पूछा है कि क्या केवल कागजों से जाति हटाने से 5000 साल पुरानी मानसिकता बदल जाएगी?
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद आदेश जारी किया है कि अब एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकॉर्ड्स और सार्वजनिक दस्तावेजों में किसी की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही थानों, वाहनों, साइनबोर्ड्स और नोटिस बोर्ड्स से भी जातीय पहचान हटाने के निर्देश दिए गए हैं। यह आदेश मुख्य सचिव दीपक कुमार के माध्यम से लागू किया गया है।
अखिलेश यादव ने उठाए पांच बड़े सवाल
अखिलेश यादव ने सोमवार को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए योगी सरकार के फैसले पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह फैसला केवल “दिखावा” है और इससे वास्तविक जातिगत भेदभाव खत्म नहीं होगा।
मानसिकता में बदलाव कैसे आएगा?
क्या केवल दस्तावेजों से जाति हटाने से समाज में 5000 वर्षों से व्याप्त जातिगत भेदभाव की मानसिकता खत्म हो पाएगी? वेशभूषा और प्रतीकों से जाति पहचान रोकने के क्या उपाय हैं? सरकार जातिगत प्रतीक चिन्हों, पोशाकों और सामाजिक व्यवहार में जाति प्रदर्शन को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है?नाम से पहले जाति पूछने की प्रवृत्ति कैसे रुकेगी?आम बातचीत या पहचान में जब नाम से पहले जाति पूछी जाती है, उसे खत्म करने के लिए सरकार क्या योजना बना रही है?जातिगत अपमान और बदनामी रोकने के क्या प्रावधान होंगे?क्या सरकार ऐसे मामलों पर ध्यान दे रही है, जहां जातिगत कारणों से किसी का घर धुलवाया जाता है या झूठे आरोपों में फंसाया जाता है?
गहराई से सोचने की आवश्यकता है
केवल ऊपरी बदलाव से सामाजिक मानसिकता नहीं बदलेगी। समाज में व्याप्त गहरे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए समावेशी शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और कानूनी कड़ाई जरूरी है।
सरकार का पक्ष और अगला कदम
सरकार का कहना है कि यह निर्णय जातिगत भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। साथ ही, SC/ST एक्ट जैसे मामलों में इस नियम से छूट दी गई है। पुलिस नियमावली और एसओपी में संशोधन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। सोशल मीडिया पर जातिगत टिप्पणियों पर नजर रखने के लिए निगरानी तंत्र बनाने की बात कही गई है। जहां एक ओर योगी सरकार अपने फैसले को सामाजिक समरसता की दिशा में क्रांतिकारी बता रही है, वहीं विपक्ष इस फैसले को केवल “कागजी बदलाव” मान रहा है। अखिलेश यादव के सवाल यह संकेत देते हैं कि जातिगत भेदभाव को जड़ से मिटाने के लिए सिर्फ नीति नहीं, बल्कि सोच और व्यवहार में भी व्यापक बदलाव जरूरी है।
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