H-1B Visa पर ट्रंप की सख्ती पर Akhilesh का सरकार पर तीखा हमला, “विदेश नीति कमजोर, भारत क्यों दिख रहा है कमज़ोर?”

Chandan Das
Akhilesh Yadav

H-1B Visa : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीज़ा आवेदकों को प्रायोजित करने वाली कंपनियों पर फीस को $100,000 (करीब ₹88 लाख) करने के फैसले ने भारत में राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार की विदेश नीति पर सवाल खड़े किए हैं।

अखिलेश यादव का सरकार पर तीखा हमला

अखिलेश यादव ने कहा “अमेरिका पहली बार भारत के साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर रहा है। हमारी विदेश नीति कमजोर ही है। हम क्यों कमजोर दिखाई दे रहे हैं? हमारी तैयारी क्या है?” उन्होंने आगे सवाल उठाया कि अगर कल को अन्य देश भी इसी तरह के प्रतिबंध या आर्थिक शर्तें लगाते हैं, तो भारत की क्या रणनीति होगी? “हमारे देश को आर्थिक रूप से जितना मजबूत दिखाई देना चाहिए था, हम नहीं दिख रहे हैं। हम दूसरे देशों पर निर्भर होते जा रहे हैं – खाद के लिए, तेल के लिए, तकनीक के लिए। जिस देश के साथ हमारी जमीन को लेकर लड़ाई है, हम लगातार उसके साथ व्यापार बढ़ा रहे हैं।”

ट्रंप का आदेश और उसका असर

डोनाल्ड ट्रंप के नए आदेश के मुताबिक, अब अमेरिका में किसी विदेशी पेशेवर को H-1B वीजा पर नियुक्त करने के लिए कंपनियों को $100,000 की भारी-भरकम फीस चुकानी होगी। यह कदम खासकर भारत जैसे देशों के आईटी प्रोफेशनल्स को प्रभावित करेगा, जो बड़ी संख्या में इस वीजा के जरिए अमेरिका में काम कर रहे हैं। इससे भारत की दिग्गज आईटी कंपनियों जैसे TCS, Infosys, Wipro, Tech Mahindra पर भी दबाव बढ़ेगा, क्योंकि वे कम लागत में भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका भेजकर परियोजनाएं पूरा करती रही हैं।

क्या भारत तैयार है?

अखिलेश यादव का बयान ऐसे समय आया है जब यह सवाल देश के नीति निर्माताओं के सामने खड़ा है कि क्या भारत की विदेश नीति वाकई इतने संवेदनशील वैश्विक मामलों में सक्षम है?विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि सरकार “बोलने” में आगे और “रणनीति” में पीछे है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब “आत्मनिर्भर भारत” के नारे से आगे जाकर “आर्थिक रूप से प्रभावशाली भारत” की ओर बढ़ना होगा, जिससे कोई भी देश भारत के साथ कठोर व्यवहार करने से पहले दो बार सोचे।

अमेरिका की H-1B वीजा नीति में इस बदलाव ने न केवल हजारों भारतीय प्रोफेशनलों की उम्मीदों को झटका दिया है, बल्कि देश की विदेश नीति और वैश्विक प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अखिलेश यादव के बयान ने इस बहस को और धार दी है कि क्या भारत की कूटनीति वाकई वैश्विक स्तर पर प्रभावी है या फिर हमें अपनी नीतियों में बड़े बदलाव की जरूरत है?

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