Allahabad HC का फैसला, कहा- “संविधान धार्मिक स्वतंत्रता देता है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन नहीं”

Akanksha Dikshit
इलाहाबाद हाईकोर्ट

Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HC) ने यौन शोषण और जबरन इस्लाम कबूल कराने के आरोपी अजीम की जमानत याचिका खारिज करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि संविधान हर व्यक्ति को अपना धर्म मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार किसी को जबरन धर्म परिवर्तन कराने के सामूहिक अधिकार में तब्दील नहीं होता। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना है। इस अधिनियम का मकसद भारत की सामाजिक सद्भावना को बनाए रखना है और देश में धर्मनिरपेक्षता की भावना को मजबूत करना है।

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यह था आरोप

अजीम पर आरोप है कि उसने एक लड़की को जबरन इस्लाम कबूल करवाने और उसका यौन शोषण करने की कोशिश की। इस मामले में उसके खिलाफ धारा 323, 504, 506 आईपीसी और धारा 3/5(1) उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 के तहत मामला दर्ज किया गया है। अजीम ने अदालत में दावा किया था कि उसे झूठा फंसाया गया है और लड़की अपनी मर्जी से उसके साथ रह रही थी।

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सरकारी वकील का पक्ष

सरकारी वकील ने आरोपी की जमानत का विरोध करते हुए धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए पीड़िता के बयान का हवाला दिया, जिसमें उसने इस्लाम कबूल करने के लिए दबाव डालने और धर्म परिवर्तन के बिना शादी की बात कही थी। पीड़िता ने अपने बयान में यह भी कहा कि उसे बकरीद के दिन पशु बलि देखने और मांसाहारी भोजन पकाने के लिए मजबूर किया गया था।

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कोर्ट का निर्णय

कोर्ट ने कहा कि धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान में पीड़िता ने स्पष्ट रूप से बताया कि अजीम और उसके परिवार के सदस्य उसे इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर कर रहे थे। उसे बंदी बनाकर रखा गया था और इस्लामी अनुष्ठान करने के लिए दबाव डाला गया था। कोर्ट ने यह भी माना कि अजीम यह साबित नहीं कर सका कि शादी से पहले लड़की को इस्लाम कबूल कराने के लिए अधिनियम की धारा 8 के तहत कोई आवेदन दायर किया गया था। इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने अजीम की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि 2021 के अधिनियम की धारा 3 और 8 का प्रथम दृष्टया उल्लंघन हुआ है, जो धारा 5 के तहत दंडनीय है।

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस प्रकार के फैसले सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। इस घटना ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की कोशिशें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। न्यायालय का यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा और समाज में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करेगा।

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