Trump Tariff Decision: अमेरिका के राष्ट्रपति और 2024 चुनाव के प्रमुख दावेदार डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर टैरिफ नीति को लेकर सुर्खियों में हैं। ऑटो और स्टील जैसी वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के बाद अब वे दवाओं पर 200% तक टैरिफ लगाने की योजना बना रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ विशेष प्रकार की दवाओं पर यह भारी टैक्स लागू किया जा सकता है, जिससे आम लोगों की जेब पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।
भारत सहित अन्य देशों से आने वाली दवाएं होंगी महंगी
इस कदम का सबसे बड़ा असर भारत जैसी फार्मा एक्सपोर्टिंग देशों पर देखने को मिलेगा। अमेरिका में बिकने वाली अधिकांश जेनेरिक दवाएं भारत और अन्य एशियाई देशों से आती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ट्रंप सरकार यह टैरिफ लागू करती है, तो इन दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं और उनकी उपलब्धता भी कम हो सकती है। इससे अमेरिकी नागरिकों को भी महंगी दवाएं खरीदनी पड़ेंगी।
ट्रंप ने 1962 के ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट का दिया हवाला
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन इस टैरिफ को लागू करने के लिए 1962 के ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट के सेक्शन 232 का हवाला दे रहा है। उनका तर्क है कि कोरोना महामारी के दौरान अमेरिका को दवाओं की भारी कमी का सामना करना पड़ा था। साथ ही, जमाखोरी की घटनाएं भी सामने आई थीं। इस वजह से वे चाहते हैं कि अब अमेरिका दवाओं का घरेलू उत्पादन बढ़ाए, जिससे भविष्य में किसी भी आपात स्थिति में देश आत्मनिर्भर बन सके।
अब दबाव और बढ़ेगा
हाल ही में अमेरिका और यूरोप के बीच हुए एक व्यापार समझौते के तहत फार्मास्यूटिकल उत्पादों पर 15% तक टैरिफ लगाया गया है। अगर ट्रंप द्वारा प्रस्तावित 200% टैरिफ लागू होता है, तो यह फार्मा सेक्टर पर एक बड़ा वित्तीय बोझ होगा। इससे न केवल दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि सप्लाई चेन पर भी गहरा असर पड़ेगा।
ट्रंप के फैसले का उल्टा असर अमेरिका पर भी संभव
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह योजना अमेरिका के लिए भी उलटी साबित हो सकती है। यदि विदेशी कंपनियों को भारी टैक्स का सामना करना पड़ेगा, तो वे अमेरिकी बाजार से बाहर निकल सकती हैं। इससे दवाओं की आपूर्ति घटेगी और कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होगी। गौरतलब है कि अमेरिका में 92% दवाएं जेनेरिक होती हैं और इनका निर्माण करने वाली कंपनियां सीमित मुनाफे पर काम करती हैं। ऐसे में वे इतनी बड़ी टैक्स वृद्धि को सहन नहीं कर पाएंगी।
जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता पर संकट
ट्रंप के प्रस्ताव से सबसे अधिक असर उन कंपनियों पर पड़ेगा जो जेनेरिक दवाएं बनाती हैं। ये कंपनियां कम कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराती हैं। अगर ये कंपनियां अमेरिकी बाजार छोड़ देती हैं, तो आम मरीजों को सस्ती दवाएं मिलना बंद हो जाएंगी और इलाज का खर्च कई गुना बढ़ सकता है।
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