Malegaon Bomb Blast Case: 2008 के बहुचर्चित मालेगांव बम विस्फोट मामले में एक बार फिर नया मोड़ आ गया है। इस केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत द्वारा बरी किए गए सातों आरोपियों को अब बॉम्बे हाईकोर्ट से नोटिस मिला है। हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को छह हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। इस केस में पीड़ित परिवारों ने विशेष अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। उनकी ओर से दाखिल की गई अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। जिन सात लोगों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
क्या है मालेगांव बम विस्फोट मामला?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक शक्तिशाली बम धमाका हुआ था। इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। शुरुआती जांच के बाद मामला एनआईए को सौंपा गया था। जांच एजेंसी ने हिंदू संगठनों से जुड़े कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित भी शामिल थे।
NIA कोर्ट का फैसला और अब हाईकोर्ट की कार्यवाही
NIA की स्पेशल कोर्ट ने 2023 में इस केस में प्रमाणों के अभाव में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका, जिससे आरोपियों को दोषी ठहराया जा सके। हालांकि इस फैसले से पीड़ित परिवार असंतुष्ट थे। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दाखिल की, जिसमें कोर्ट से यह निवेदन किया गया कि स्पेशल कोर्ट का फैसला न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और इसकी दोबारा समीक्षा होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा – “जवाब देना जरूरी”
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि मामला जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, इसलिए बरी किए गए आरोपियों की प्रतिक्रिया जरूरी है। अदालत ने सभी सातों आरोपियों को नोटिस भेजकर छह हफ्तों के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
आगे की सुनवाई में क्या हो सकता है?
इस नोटिस के बाद अब सभी आरोपी अपनी-अपनी कानूनी टीमें बनाकर हाईकोर्ट में अपनी दलीलें पेश करेंगे। अगर कोर्ट को लगता है कि स्पेशल कोर्ट का फैसला गलत था या जांच में कोई गंभीर खामी रह गई थी, तो मामले की दोबारा सुनवाई भी संभव है। मालेगांव बम विस्फोट केस भारत की राजनीति और न्याय व्यवस्था दोनों के लिए बेहद संवेदनशील मुद्दा रहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट की यह कार्रवाई इस बात का संकेत है कि देश में न्याय की प्रक्रिया अब भी सतर्क और पारदर्शिता की ओर अग्रसर है। आने वाले हफ्तों में इस मामले में कई और बड़े मोड़ देखने को मिल सकते हैं।
