Anti-Sikh Riots Case:दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह फैसला उन पर लगे दो सिख नागरिकों की हत्या के मामले में आया है। सज्जन कुमार, जो इस समय तिहाड़ जेल में बंद हैं, पर आरोप था कि उन्होंने दंगों के दौरान दो सिख नागरिकों की हत्या करवाई थी। अदालत ने 25 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रखा था और फिर 26 फरवरी को सजा सुनाई। यह फैसला सिख समुदाय के लिए एक बड़ी उम्मीद की किरण बनकर आया है, क्योंकि इसने उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद दी है।
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सिख विरोधी दंगे

1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख समुदाय के खिलाफ भारी हिंसा हुई थी। दिल्ली समेत कई जगहों पर सिखों के घरों और व्यापारों पर हमले किए गए, जिसमें सैकड़ों सिखों की हत्या हुई थी। इस घटना को “1984 सिख विरोधी दंगे” के रूप में जाना जाता है। सज्जन कुमार पर यह आरोप था कि उन्होंने दंगाइयों को उकसाया और सिखों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया। यह मामले लंबे समय तक न्यायालय में विचाराधीन रहे थे और अंततः अब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
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सज्जन कुमार के खिलाफ न्याय की प्रक्रिया

सज्जन कुमार के खिलाफ यह मामला कई वर्षों तक अदालत में लटका रहा। यह मामला 2018 में फिर से सक्रिय हुआ, जब उच्चतम न्यायालय ने सिख विरोधी दंगों के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। उसके बाद सजा की प्रक्रिया शुरू हुई और अब 2025 में कोर्ट ने सज्जन कुमार को सजा दी है। यह फैसला इस बात का प्रतीक है कि न्याय धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अंततः मिलता है।
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सिख समुदाय की प्रतिक्रिया

इस फैसले पर सिख समुदाय ने खुशी व्यक्त की है। लंबे समय से न्याय का इंतजार कर रहे सिखों ने इस फैसले को एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। उनके अनुसार, यह फैसला न सिर्फ सज्जन कुमार के लिए, बल्कि पूरे सिख समुदाय के लिए न्याय का प्रतीक है। इस फैसले से सिख समुदाय को यह महसूस हुआ है कि उनके दर्द और नुकसान को समझा गया है और दोषियों को सजा मिल रही है।
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आगे की प्रक्रिया और संभावनाएं
अब सज्जन कुमार के लिए यह सवाल उठता है कि क्या वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। न्याय की प्रक्रिया में कई मोड़ आ सकते हैं, लेकिन फिलहाल यह फैसला सिख समुदाय और आम जनता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।सज्जन कुमार को सजा मिलना उन लाखों पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए एक जीत की तरह है, जिन्होंने 1984 के दंगों के दौरान अपार दुःख और कष्ट सहा था। यह फैसला यह दर्शाता है कि कानूनी प्रणाली को देर से ही सही, लेकिन न्याय की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए।

