Dayashankar Singh: उत्तर प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार वजह कोई सरकारी योजना या उपलब्धि नहीं, बल्कि एक 15 साल पुराने केस में कोर्ट की कार्रवाई है। यूपी की बलिया कोर्ट ने दयाशंकर सिंह समेत 15 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। आरोप है कि ये सभी कोर्ट में हाजिर नहीं हो रहे थे, जबकि मामले में उन्हें समन भेजा जा चुका था।
क्या है मामला?
पूरा मामला 9 सितंबर 2015 का है, जब बलिया में टेंडर विवाद को लेकर दो सपा नेताओं के बीच टकराव हुआ था। उस दौरान बीजेपी के स्थानीय नेता दयाशंकर सिंह भी घटनास्थल पर मौजूद थे।विवाद के बाद मालगोदाम चौराहा पर प्रदर्शन हुआ, रोड जाम किया गया और यातायात बाधित हुआ। मौके पर तैनात पोस्ट इंचार्ज सत्येंद्र राय ने दयाशंकर सिंह समेत 17 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।इन पर धारा 144 के उल्लंघन, सार्वजनिक मार्ग बाधित करने, धारा 147 (दंगा), धारा 188 (सरकारी आदेश की अवहेलना) जैसी धाराएं लगाई गई थीं।
किन लोगों पर है मामला?
इस मामले में परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के अलावा कई स्थानीय भाजपा नेता और कार्यकर्ता शामिल हैं: सतीश अग्रवाल, दीपक कुमार, सर्वदमन जायसवाल,राजेश गुप्ता,बंटी वर्मा,रामजी गुप्ता,नागेंद्र पांडेय, संतोष सोनी,पप्पू पांडेय,धीरज गुप्त,मनोज गुप्ता,ओमप्रकाश तुरहा, इनमें से कुछ ने जमानत ले ली, लेकिन बाकी कोर्ट में पेश नहीं हो रहे थे, जिस पर नाराज होकर सीजेएम कोर्ट, बलिया ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। मंत्री दयाशंकर सिंह ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा, “मुझे इस केस की कोई जानकारी नहीं थी। अगर कोर्ट से कोई नोटिस आया होता, तो मैं जरूर पेश होता। अब मैं कानून का सम्मान करते हुए जल्द ही कानूनी प्रक्रिया का पालन करूंगा।”
कौन हैं दयाशंकर सिंह?
दयाशंकर सिंह यूपी की योगी सरकार में परिवहन मंत्री हैं और बलिया के बैरिया विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के पुराने और सक्रिय नेता माने जाते हैं। लंबे समय से पार्टी संगठन में भी काम कर चुके हैं।2016 में भी दयाशंकर सिंह चर्चा में आए थे, जब उन्होंने तत्कालीन बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ विवादास्पद बयान दिया था।
क्या आगे हो सकता है?
अब देखना होगा कि यूपी पुलिस कोर्ट के गिरफ्तारी आदेश पर कैसे और कब कार्रवाई करती है। इस मामले का राजनीतिक असर कितना होता है, ये आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। हालांकि, विपक्ष ने पहले ही इसे “कानून-व्यवस्था और नैतिकता का मुद्दा” बताते हुए सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। एक पुराने केस की अनदेखी अब यूपी के परिवहन मंत्री के लिए कानूनी मुसीबत बनती दिख रही है। अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए गिरफ्तारी का आदेश दिया है, जिससे यह मामला अब पूरी तरह सार्वजनिक और राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है।
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