Bakrid 2025: ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद, ईद-उल-जुहा या कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है। यह पर्व केवल एक धार्मिक रिवायत ही नहीं बल्कि अल्लाह के प्रति समर्पण, त्याग और इंसानियत की भावना को दर्शाने वाला अवसर है। मुस्लिम समुदाय इसे बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाता है।
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हजरत इब्राहीम की कुर्बानी की याद में मनाई जाती है बकरीद
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इस पर्व की शुरुआत उस प्रेरणादायक घटना से हुई जब हजरत इब्राहीम (अलैहि सलाम) को अल्लाह की ओर से परीक्षा में डाला गया। अल्लाह ने उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी की मांग की। हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे की कुर्बानी का निश्चय किया, लेकिन जब वे अल्लाह का आदेश पूरा करने ही वाले थे, तब अल्लाह ने उन्हें रोक दिया और बेटे की जगह एक दुम्बे की कुर्बानी स्वीकार की। तभी से यह परंपरा बनी हुई है कि मुसलमान इस दिन जानवर की कुर्बानी देकर अल्लाह के प्रति अपनी आस्था और समर्पण प्रकट करते हैं।
सऊदी अरब ने घोषित की बकरीद की आधिकारिक तारीख
सऊदी अरब की सुप्रीम कोर्ट ने 27 मई 2025 को धुल-हिज्जा का चांद नजर आने के बाद ईद-उल-अजहा की तारीख की आधिकारिक घोषणा की। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार धुल-हिज्जा साल का दूसरा सबसे पवित्र महीना होता है। सऊदी सरकार ने बताया कि इस वर्ष हज यात्रा 4 जून से आरंभ होगी, अराफा का दिन 5 जून को होगा और ईद-उल-अजहा शुक्रवार, 6 जून 2025 को मनाई जाएगी।
भारत में चांद देखने पर निर्भर करेगी बकरीद की तारीख
भारत में इस्लामी त्योहारों की तारीखें स्थानीय चांद दिखाई देने पर तय होती हैं। यदि 28 मई को चांद दिखाई देता है, तो भारत में ईद-उल-अजहा शनिवार, 7 जून 2025 को मनाई जाएगी। वहीं अगर चांद 29 मई को दिखाई देता है, तो यह पर्व रविवार, 8 जून 2025 को मनाया जाएगा। भारत सहित कई अन्य देशों में यही परंपरा है कि चांद देखने के आधार पर इस्लामी त्योहारों की तारीख निर्धारित की जाती है।
कुर्बानी के जरिए अल्लाह के प्रति समर्पण की होती है अभिव्यक्ति
ईद-उल-अजहा पर मुसलमान आर्थिक स्थिति के अनुसार जानवर की कुर्बानी करते हैं, जिसमें बकरी, दुम्बा, ऊंट या गाय शामिल हो सकते हैं। यह कुर्बानी इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार तीन हिस्सों में बांटी जाती है—एक हिस्सा गरीबों को, दूसरा रिश्तेदारों को और तीसरा खुद के लिए रखा जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि इंसानियत, समानता और दया की भावना को सशक्त करने का एक जरिया भी है।
ईद-उल-अजहा सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि समर्पण, त्याग और भाईचारे की मिसाल है। यह पर्व न सिर्फ हजरत इब्राहीम की आज्ञापालन की मिसाल को जीवित रखता है, बल्कि समाज में दया, उदारता और सेवा की भावना को भी बढ़ावा देता है।
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