Bangladesh Political Crisis: बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थिति एक बार फिर चर्चा में है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद पिछले 13 महीनों में देशभर से 44,472 लोगों की गिरफ्तारी ने सभी को चौंका दिया है। हैरानी की बात यह है कि इन गिरफ्तारियों में ज़्यादातर लोग अवामी लीग से जुड़े नेता और कार्यकर्ता हैं।
बांग्लादेश के प्रमुख समाचार माध्यम प्रথম आलो की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह आंकड़े खुद पुलिस मुख्यालय और पद्मापार पुलिस ने साझा किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 32,371 लोगों को जमानत मिल चुकी है, जबकि 37 प्रतिशत लोग अब भी जेल में हैं।
किस क्षेत्र से कितनी गिरफ्तारी?
ढाका से 7,355 गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें से 4,806 लोगों को जमानत मिली। राजशाही रेंज में 5,018 लोग गिरफ्तार हुए, 4,221 को जमानत मिली। खुलना में 5,992 गिरफ्तारियों में से 4,554 को जमानत दी गई। बरिसाल से 1,776 में से 1,555 को, रंगपुर से 3,891 में से 2,714 को और माइमेनसिंह से 3,036 में से सिर्फ 1,443 को जमानत मिल पाई है।बांग्लादेश के गृह मंत्रालय ने भी चिंता जताई है कि 73% राजनीतिक आरोपों में गिरफ्तार लोगों को जमानत मिल गई है। मंत्रालय का मानना है कि पुलिस पर्याप्त सबूत नहीं दे पा रही है, जिसके कारण अदालतें इन्हें रिहा कर रही हैं।
यूनुस सरकार पर लग रहे सवाल
नोबेल विजेता और वर्तमान शासन प्रमुख मोहम्मद यूनुस की सरकार पर अब राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लग रहे हैं। जब शेख हसीना को छात्र आंदोलन के चलते देश छोड़ना पड़ा, तो जमात-ए-इस्लामी और शिबिर जैसे कट्टरपंथी संगठन सक्रिय हो गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन संगठनों ने अवामी लीग समर्थकों पर हमले किए, उनके घर जलाए और कई जगहों पर लूटपाट की। आरोप है कि प्रशासन मूकदर्शक बना रहा।
अवामी लीग पर प्रतिबंध के बाद हालात और बिगड़े
अवामी लीग पर प्रतिबंध लगने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने ढाका समेत कई शहरों में अचानक रैलियां निकालीं। पुलिस ने इन रैलियों से सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया। विश्लेषकों का मानना है कि यह सब राजनीतिक बदले की भावना से किया जा रहा है। यही वजह है कि अदालतों में पुलिस पर्याप्त साक्ष्य नहीं दे पा रही और ज़्यादातर गिरफ्तार लोग रिहा हो रहे हैं।
बांग्लादेश में वर्तमान राजनीतिक हालात लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर की जा रही गिरफ्तारियों और अदालतों द्वारा जमानत दिए जाने की बढ़ती संख्या यह दिखाती है कि प्रशासन का रवैया पक्षपातपूर्ण हो सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि यूनुस सरकार इस आलोचना का क्या जवाब देती है।
