Basava Jayanti 2025:बसव जयंती एक पवित्र और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण पर्व है, जो प्रभु बसवन्ना की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है, जो इस बार 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया के दिन पड़ रही है। यह दिन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव और समानता के प्रतीक संत की स्मृति का उत्सव है।
बसव जयंती कहां और क्यों मनाई जाती है?
यह त्योहार कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में धार्मिक श्रद्धा और सामाजिक प्रेरणा के साथ मनाया जाता है। कर्नाटक में तो इस दिन राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया जाता है क्योंकि यहां लिंगायत समुदाय की संख्या बड़ी है और बसवन्ना को विशेष सम्मान दिया जाता है।
कौन थे प्रभु बसवन्ना?
प्रभु बसवेश्वर या बसवन्ना 12वीं सदी के एक महान दार्शनिक, कवि, और सामाजिक सुधारक थे। वे लिंगायत संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं। बसवन्ना ने समाज में जातिवाद, अंधविश्वास, और लिंग भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।
उनका मानना था कि ईश्वर की पूजा केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि कर्म और सच्चाई के माध्यम से की जा सकती है।
उन्होंने “वचनों” के रूप में सैकड़ों शिक्षाप्रद रचनाएं लिखीं, जो आज भी कन्नड़ साहित्य में प्रेरणा का स्रोत हैं।
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बसव जयंती कैसे मनाई जाती है?
- बसव जयंती के दिन लोग श्रद्धा और उल्लास के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेते हैं:
- भगवान बसवेश्वर के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
- लिंगायत समुदाय की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रभात फेरियां, और धार्मिक संगोष्ठियां आयोजित की जाती हैं।
- स्कूलों और कॉलेजों में बसवन्ना की शिक्षाओं पर निबंध लेखन, भाषण प्रतियोगिताएं होती हैं।
- लोग एक-दूसरे को मिठाइयों और शुभकामनाओं के साथ यह दिन मनाते हैं।
- इस दिन बसवन्ना की समाज सुधारक नीतियों और विचारों को याद किया जाता है।
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बसवेश्वर की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक क्यों हैं?
- समानता: उन्होंने समाज में सभी वर्गों के लिए समान अधिकार की बात की।
- श्रम की महत्ता: उन्होंने कर्म को पूजा से भी ऊपर माना।
- नारी सम्मान: महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते हुए, उन्होंने महिला संतों को भी मंच प्रदान किया।
- धर्म और नैतिकता को आम जनजीवन से जोड़ने का प्रयास किया।