Bengal Politics: कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल की राजनीति में बड़ा फैसला सुनाते हुए मुकुल रॉय का कृष्णानगर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से विधायक पद रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक की खंडपीठ ने यह निर्णय दलबदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) के तहत दिया। अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के उस फैसले को भी निरस्त कर दिया, जिसमें मुकुल रॉय के विधायक पद को बरकरार रखा गया था।
Bengal Politics: शुभेंदु अधिकारी ने कहा-‘ऐतिहासिक फैसला, लोकतंत्र की जीत’
अदालत के आदेश के बाद विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा, “यह ऐतिहासिक फैसला है। अगर कोई नेता अपनी पार्टी छोड़ता है, तो उसे अपने पद से भी इस्तीफा देना चाहिए। मैंने भी यही किया था।”शुभेंदु ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि सीपीएम और कांग्रेस अपने विधायकों की रक्षा करने में नाकाम रहीं, जबकि यह फैसला भाजपा की वैचारिक जीत साबित हुआ है।
Bengal Politics: टीएमसी ने भाजपा पर साधा निशाना
हाईकोर्ट के आदेश के बाद तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने भी प्रतिक्रिया दी। पार्टी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि अदालत के फैसले पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, लेकिन शुभेंदु अधिकारी को अपने परिवार के मामलों में दलबदल कानून याद नहीं रहता।अरूप चक्रवर्ती ने कहा, “मुकुलदा बीमार हैं, हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। मगर शुभेंदु अधिकारी का राजनीतिक पाखंड एक बार फिर सामने आ गया है।”
मुकुल रॉय का राजनीतिक सफर
मुकुल रॉय ने नवंबर 2017 में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। इसके कुछ समय बाद उनके बेटे शुभ्रांशु रॉय भी भाजपा में शामिल हो गए। पार्टी ने मुकुल को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया।2021 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कृष्णानगर उत्तर सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में बड़ी जीत दर्ज की। मगर चुनाव के बाद उन्होंने अचानक टीएमसी में घर वापसी कर ली और 11 जून 2021 को कोलकाता में तृणमूल भवन में ममता बनर्जी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
भाजपा ने उठाई थी मुकुल के पद हटाने की मांग
मुकुल रॉय के दोबारा तृणमूल में लौटने के बाद भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष से उनके विधायक पद को रद्द करने की मांग की थी। हालांकि, मुकुल रॉय के वकीलों ने विधानसभा में दावा किया कि वे अब भी भाजपा विधायक हैं और उन्होंने किसी दल से औपचारिक रूप से इस्तीफा नहीं दिया।इस बीच, सत्ता पक्ष के साथ होने के कारण उन्हें पीएसी (Public Accounts Committee) के अध्यक्ष पद का दायित्व भी मिल गया। भाजपा ने इस पर भी विरोध दर्ज किया, लेकिन स्पीकर ने मुकुल के पक्ष में फैसला सुनाया।
अभूतपूर्व कानूनी फैसला
यह मामला भाजपा नेताओं शुभेंदु अधिकारी और अंबिका रॉय द्वारा दायर किया गया था, जो वर्षों से लंबित था। आखिरकार, कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया और मुकुल रॉय का विधायक पद समाप्त कर दिया।कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, किसी विधायक का पद उच्च न्यायालय के आदेश पर रद्द होना व्यावहारिक रूप से अभूतपूर्व है। इस फैसले से पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है, जो भविष्य में दलबदल विरोधी कानून के पालन को और सख्त बना सकता है।
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