Sujata Naxal Surrenders: छत्तीसगढ़ और तेलंगाना पुलिस को नक्सल विरोधी अभियान में बड़ी सफलता मिली है। नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी सदस्य और एक करोड़ की इनामी महिला नक्सली सुजाता ने आखिरकार तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। सुजाता दक्षिण सब जोनल ब्यूरो (South Sub Zonal Bureau) की इंचार्ज थी और नक्सली कमांडर किशनजी की पत्नी बताई जा रही है। किशनजी को एक दशक पहले बेंगलुरु में सुरक्षा बलों ने ढेर कर दिया था। शनिवार दोपहर तेलंगाना पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस सरेंडर की पुष्टि की और इसे नक्सल संगठन के लिए बड़ा झटका करार दिया।
लंबे समय से नक्सल संगठन की मुख्य रणनीतिकार रही सुजाता
सुजाता को नक्सल संगठन में एक थिंक टैंक के तौर पर जाना जाता था। वह लंबे समय तक छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के जंगलों में सक्रिय रही। साथ ही बंगाल और तेलंगाना में भी उसने नक्सली गतिविधियों को अंजाम दिया। वह अपने कई छद्म नामों जैसे पद्मा, कल्पना, सुजातक्का, झांसीबाई और मैनीबाई के नाम से जानी जाती थी।
कौन है सुजाता?
शैक्षणिक योग्यता: 12वीं तक पढ़ी हुई, भाषाओं का ज्ञान: अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, उड़िया, तेलुगु, गोंडी और हल्बी,परिवार पृष्ठभूमि: नक्सल आंदोलन से जुड़ा हुआ,, संगठन में पद: सेंट्रल कमेटी मेंबर, साउथ सब जोनल ब्यूरो प्रभारी, पुरस्कार राशि: ₹1 करोड़, सुजाता के नाम दर्ज हैं कई बड़े नक्सली हमले।
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पिछले दो दशकों में हुए कई भयानक नक्सली हमलों की मास्टरमाइंड सुजाता रही है। इनमें शामिल हैं: 2007 एर्राबोर हमला: 23 जवान शहीद, 2010 ताड़मेटला हमला: 76 जवान शहीद,2010 गादीरास हमला: 36 की हत्या,2013 झीरम घाटी हमला: 31 कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता मारे गए,2017 चंतागुफा, मिनपा और टेकुलगुड़ेम हमले: कुल 63 जवान शहीद। सुजाता के साथ तीन अन्य नक्सलियों ने भी आत्मसमर्पण किया है। यह सभी लंबे समय से संगठन के सक्रिय सदस्य थे और विभिन्न क्षेत्रों में हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं।
गिरफ्तारी की खबर को पहले बताया था अफवाह
बता दें कि अक्टूबर 2024 में सुजाता की गिरफ्तारी की खबरें सामने आई थीं, लेकिन उसने स्वयं उन खबरों को अफवाह बताया था। कहा गया था कि वह इलाज के लिए तेलंगाना आई थी, जहां उसे गिरफ्तार किया गया। हालांकि अब उसने स्वेच्छा से सरेंडर कर नक्सलवाद छोड़ने का फैसला लिया है।
सुजाता का आत्मसमर्पण सुरक्षा बलों की सर्जिकल नक्सल नीति की बड़ी सफलता है। एक दशक से अधिक समय तक बस्तर के जंगलों में आतंक का चेहरा रही यह महिला अब मुख्यधारा में लौट आई है। इससे ना सिर्फ नक्सलियों की रणनीतिक ताकत को झटका लगा है, बल्कि बाकी सक्रिय नक्सलियों के लिए भी एक कड़ा संदेश गया है कि हिंसा का रास्ता अंततः विनाश की ओर ही ले जाता है।
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