DALIT POLITICS IN BIHAR: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ है। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सभी पार्टियां एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं।
ऐसे में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू ने भी चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बता दें कि हर बार की तरह इस बार भी जेडीयू दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुट गई है।
2020 में छिटके थे दलित मतदाता
बिहार में 2005 और 2010 में हुए चुनाव में जेडीयू ने समाज के हर तबके के समर्थन से परचम लहराया था। इन दोनों चुनावों में सबसे अधिक दलित विधायक वाले जेडीयू को 2020 में भारी नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में जेडीयू ने दलित वोटर्स को साधने के लिए अभी से काम करना शुरू कर दिया है।
JDU भव्य तरीके से मनाएगी अम्बेडकर जयंती
आपको बता दें कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती है। बाबा साहेब की जयंती को जेडीयू बड़े स्तन पर मनाएगी। पटना के बापू सभागार में 13 अप्रैल को बड़ा कार्यक्रम किया जा रहा है। पार्टी के सभी दलित मंत्री और नेताओं को इसमें लगाया गया है।
14 अप्रैल को दीपोत्सव कार्यक्रम का भी आयोजन होगा, जिसमें जेडीयू के नेता अपने घरों में दीप जलाकर अंधकार से शिक्षा रूपी उजाले की ओर चलने का संदेश देंगे।
तो इसलिए दलितों को लुभाना चाहती है JDU
बिहार में 243 विधानसभा सीटों में प्रत्येक सीट पर 40,000 से 50,000 के करीब दलित मतदाता हैं। जो हर चुनाव में जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
बिहार विधानसभा में कुल 40 आरक्षित सीटें हैं, इसमें 38 अनुसूचित जाति और 2 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं। 2020 में जेडीयू ने सिर्फ 8 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में जेडीयू दलित वोटर्स को रिझाने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहती है।
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