Bihar Politics: भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में किए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई जारी है।बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।शुरूआती सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता और चुनाव आयोग की ओर से दलीलें पेश की गईं।
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वोटर लिस्ट रिवीजन मामले में SC में सुनवाई
सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि,आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत उनका दायित्व है।याचिकाकर्ता ये नहीं कह सकते कि,आयोग की ओर से कुछ ऐसा किया जा रहा है जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। कानून यह तय नहीं कर सकता कि,आयोग कब रिवीजन करे,इसे आयोग ही तय कर सकता है।
चुनाव आयोग ने आरोपों पर पेश की सफाई
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से स्पष्ट किया गया,आयोग की कोई मंशा नहीं है किसी मतदाता का नाम हटाया जाए।चुनाव आयोग,जाति,क्षेत्र वगैरह के आधार पर वोटरों में भेद नहीं करता।जस्टिस धूलया ने कहा,आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत उनका दायित्व है।
चुनाव आयोग के पक्ष में जस्टिस धूलिया
उन्होंने कहा कि,आप यह नहीं कह सकते वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। आयोग ने 2003 की तारीख तय की है क्योंकि इससे पहले व्यापक प्रक्रिया की जा चुकी है।उनके पास इसके आंकड़े मौजूद हैं।वे फिर से ऐसा क्यों करें? SIR के पीछे चुनाव आयोग के पास एक वाजिब तर्क है।
चुनाव आयोग पर नियमों को दरकिनार करने का आरोप
वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील गोपाल शंकर नारायण ने सुप्रीमकोर्ट में अपनी दलील देते हुए कहा कि,नियमों को दरकिनार करते हुए विशेष पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है ये भेदभावपूर्ण है कानून से अलग हटकर इसे चलाया जा रहा है।उन्होंने बताया कि,चुनाव आयोग कहता है 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वालों को दस्तावेज नहीं देने होंगे जो भेदभावपूर्ण है।
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