Bihar Voter List Review: मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण चुनाव आयोग के विशेषाधिकार में आता है। इसमें कोई कानूनी बाधा नहीं है। तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोईत्रा समेत कई राजनीतिक दलों द्वारा दायर एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया। हालाँकि, साथ ही, शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को शुरू करने के ‘समय’ को लेकर भी बड़ा सवाल उठाया।
वकील गोपाल शंकरनारायण ने किया ये दावा
मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई मामले दायर किए गए थे। गुरुवार को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची की पीठ में इनकी सुनवाई एक साथ शुरू हुई। आज हुई सुनवाई में वादियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील गोपाल शंकरनारायण ने दावा किया कि 1950 के अधिनियम और मतदाता पंजीकरण अधिनियम के तहत मतदाता सूची में दो तरह के पुनरीक्षण होते हैं। एक, गहन सर्वेक्षण। दूसरा, संक्षिप्त सर्वेक्षण। लेकिन आयोग जो विशेष गहन पुनरीक्षण या गहन पुनरीक्षण कर रहा है, वह दरअसल मतदाता सूची को नए सिरे से बनाने जैसा है। कानून में इसका कोई उल्लेख नहीं है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है।
मताधिकार पर सवाल !
वादी के वकील का दावा है कि 2003 से पहले के मतदाता रिकॉर्ड लिए जा रहे हैं। उस वर्ष से अब तक देश में पाँच लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। तो क्या आयोग उन चुनावों में मतदान करने वालों के मताधिकार पर सवाल उठा रहा है? इस दलील को सुनकर सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने पूछा, “क्या आप चुनाव आयोग की शक्ति पर सवाल उठा रहे हैं?” इस पर वादी के वकील ने कहा, “हम आयोग की शक्ति को चुनौती नहीं दे रहे हैं। हम इस प्रक्रिया को चुनौती दे रहे हैं। नियमों में इस प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है। आयोग अपनी मनमानी कर रहा है।”
चुनाव से ठीक पहले व्यापक संशोधन क्यों?
वादी की दलीलों के बाद न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची ने कहा, “जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 14 के अनुसार, आयोग यदि उचित समझे तो विशेष पुनरीक्षण कर सकता है।” फिर खंडपीठ ने वादी से कहा, “चुनाव आयोग जो कर रहा है वह संविधान के अनुरूप है। इसके कई व्यावहारिक आधार हैं। एक विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित करने का भी एक कारण है। लेकिन यह कब किया जा रहा है, इस पर सवाल उठ सकते हैं।” इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से पूछा, “चुनाव से ठीक पहले व्यापक संशोधन क्यों? यह निष्पक्ष मतदान क्यों नहीं हो सकता?” जस्टिस धूलिया ने फिर उन लोगों को लेकर चिंता जताई जिनके नाम छूट जाएँगे, क्योंकि एक बार मतदाता सूची अंतिम रूप ले लेगी, तो अदालत को भी दखल देने का अधिकार नहीं होगा।
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