Bihar Chunav 2025: बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision) को लेकर विवाद बढ़ गया है। मतदाता सूची से लाखों नामों के हटाए जाने की आशंका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में निर्वाचन आयोग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं और दावा किया गया है कि यह खासकर महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के साथ भेदभाव करती है।
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10 जुलाई को सुनवाई पर सहमत हुआ सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 10 जुलाई 2025 की तारीख तय की है। याचिकाओं में दावा किया गया है कि चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई पुनरीक्षण प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इसके चलते कई वास्तविक मतदाताओं के नाम सूची से बिना पर्याप्त सूचना के हटा दिए जा सकते हैं।
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याचिकाकर्ता कौन हैं?
- इस मामले में याचिका दायर करने वालों में कई वरिष्ठ अधिवक्ता शामिल हैं:
- कपिल सिब्बल
- अभिषेक मनु सिंघवी
- गोपाल शंकरनारायणन
- शादाब फरासत
- इन वरिष्ठ वकीलों ने कोर्ट के समक्ष अपनी दलील में कहा कि बिहार में महिलाओं, दलितों और गरीब तबकों के नाम disproportionate रूप से हटाए जा रहे हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
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वोटर लिस्ट से नाम क्यों हट रहे हैं?
बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के तहत चुनाव आयोग पुराने और संदिग्ध नामों को हटाने की प्रक्रिया चला रहा है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया सही तरीके से लागू नहीं की जा रही और इससे लोकतंत्र में भागीदारी पर असर पड़ सकता है।
चुनाव आयोग का पक्ष
फिलहाल चुनाव आयोग की ओर से इस मामले में कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि वह कोर्ट में यह स्पष्ट करेगा कि पूरी प्रक्रिया नियमों और पारदर्शिता के साथ की जा रही है।
क्यों अहम है यह मामला?
2025 में बिहार में संभावित विधानसभा चुनाव और आने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिहाज से यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर याचिकाकर्ताओं की बात सही साबित होती है, तो इससे चुनावी प्रक्रिया की वैधता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं।
दोबारा जांचने का निर्देश
सभी की नजर अब 10 जुलाई की सुनवाई पर टिकी है, जहां सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि इस मुद्दे में फैसले के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता है या नहीं। यदि कोर्ट को लगेगा कि वोटर लिस्ट से नाम हटाए जाने की प्रक्रिया में त्रुटि है, तो चुनाव आयोग को इसे रोकने या दोबारा जांचने का निर्देश दिया जा सकता है।