BJP Bengali outreach: बंगाल चुनाव से पहले भाजपा का बंगालीकृत, राम के बदले मां दुर्गा और मां काली के शरण में BJP

Chandan Das

BJP Bengali outreach : अब रामनाम नहीं! 2026 विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल भाजपा आखिरकार खुद को पूरी तरह से बंगालीकृत करने की कोशिश में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुर्गापुर सभा के निमंत्रण पत्र से जय श्री राम का नारा हटा दिया गया है। इसकी जगह भाजपा नेतृत्व मां दुर्गा और मां काली की शरण में जा रहा है। शमिक भट्टाचार्य के अध्यक्ष बनने के बाद इस बदलाव के संकेत मिले थे। भाजपा के ‘गैर-बंगाली’ पार्टी के ठप्पे से छुटकारा पाने के लिए, शमिक ने अपने पहले मंच पर मां काली की तस्वीर लगाई थी। यह पहल कोई अनोखी नहीं है, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा से पहले ही बंगाल भाजपा की गतिविधियों से स्पष्ट हो गया था।

राम के जगह दुर्गा और काली

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी 50 दिन के बाद राज्य में आ रहे हैं। दुर्गापुर में उनके दो कार्यक्रम हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुर्गापुर सभा के निमंत्रण पत्र से भाजपा का पारंपरिक ‘जय श्री राम’ का नारा हटा दिया गया है। इसकी जगह ‘भारत माता की जय’ लिखने के बाद ‘जय मां दुर्गा, जय मां काली’ लिखा गया है। प्रधानमंत्री की जनसभा का निमंत्रण पत्र गुरुवार को घर-घर पहुँचाया गया। पत्र की शुरुआत ‘प्रिय दुर्गापुर वासियों…’ से होती है। दूसरी पंक्ति में लिखा है  ‘भारत माता की जय, मां दुर्गा की जय मां काली की जय।’

शमिक भट्टाचार्य की कोशिश

दरअसल शमिक भट्टाचार्य पार्टी को सुधारने की भी कोशिश कर रहे हैं। सत्तारूढ़ दल ने बंगालियों के एक बड़े वर्ग के मन में भाजपा की एक नकारात्मक, उग्र हिंदुत्ववादी और ‘बंगाली-विरोधी’ छवि गढ़ दी है। दिलीप घोष या शुवेंदु अधिकारी के तीखे भाषणों ने उस छवि को और मजबूत करने में मदद की है। भाजपा चाहे जितना भी रामनवमी मनाए या विधानसभा में राम के नाम पर नारे लगाकर भीड़ जुटाने की कोशिश करे बंगाली उस नारे से एकजुट नहीं हो पा रहे हैं, जैसा कि अतीत में मतदान केंद्रों पर देखा गया है।

शमिकों को लगता है कि राम के नाम पर चाहे कुछ भी कहा जाए, तृणमूल को भगाना मुश्किल है। इसलिए वह पार्टी को बंगाली संस्कृति और धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। शायद इसीलिए मोदी की सभा के निमंत्रण पत्र में दुर्गा और काली का ज़िक्र है। लेकिन तृणमूल के लिए सवाल यह है कि क्या वाकई माँ काली या दुर्गा के नाम पर यह दिखावा या संकीर्ण राजनीति करना ज़रूरी है?

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