वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया 2025 का बजट, कई दृष्टिकोणों से आलोचना का केंद्र बन गया है। कुछ आलोचक इसे “घिसे-पिटे रास्ते” पर चलने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि अन्य इसे 1991 और 2004 के बजट से तुलनात्मक रूप से समान बता रहे हैं। इस बजट की समीक्षा करने से पहले, यह समझना महत्वपूर्ण है कि 1991 और 2004 में पेश हुए बजट भी देश के आर्थिक संदर्भ में ऐतिहासिक बदलावों को दर्शाते थे।
Read More:Union Budget 2025: सरकार ने कैसे किया आर्थिक बदलाव? जानिए एक्सपर्ट्स का खुलासा
1991 का बजट

यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रतीक था। तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने इसे पेश किया था, जिसमें देश को एक बड़ी आर्थिक संकट का सामना था। इस बजट में लाइसेंस राज को समाप्त करने, विनिवेश, और खुले बाजार की नीतियों को अपनाने की दिशा में कई बड़े कदम उठाए गए थे। यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों से जोड़ने और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की दिशा में महत्वपूर्ण था।
2004 का बजट

इस बजट में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान प्रस्तुत किया गया था। इसमें एक स्थिर आर्थिक विकास दर और सकारात्मक वैश्विक संकेतकों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के प्रयास किए गए थे। यह बजट औद्योगिक और बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने, टैक्स में सुधार करने, और सामाजिक कल्याण योजनाओं को प्राथमिकता देने के लिए था। इस बजट में सरकार ने ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्रों में खर्च को बढ़ाने का भी प्रस्ताव रखा था।
2025 का बजट

अगर 2025 के बजट की बात करें, तो यह बजट एक ऐसे समय में आया है जब भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंदी, आंतरिक आर्थिक दबावों और रोजगार संकट जैसी समस्याओं का सामना है। इसमें कई सुधारों और योजनाओं की घोषणा की गई है, जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बड़े निवेश, पीएम आवास योजना और कृषि क्षेत्र में सुधार के प्रयास। हालांकि, कुछ आलोचक इसे “घिसे-पिटे रास्ते” का अनुसरण करने वाला मानते हैं, क्योंकि बजट में पुराने उपायों का पुनरावलोकन अधिक दिखता है, जैसे कि कराधान में मामूली सुधार और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की निरंतरता।
क्या 2025 का बजट 1991 और 2004 जैसा है?
1991 और 2004 का बजट देश के लिए परिवर्तनकारी था, लेकिन 2025 का बजट कुछ मामलों में स्थिरता की ओर इशारा करता है। यह नए आयामों के बजाय पुराने तरीकों को प्राथमिकता देता हुआ प्रतीत होता है। 1991 में मनमोहन सिंह ने जब आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की थी, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नया युग था, जबकि 2025 का बजट वैश्विक स्थिति के मद्देनजर पुराने उपायों को पुनः लागू करने की कोशिश करता है।

Read More:“Budget 2025 से उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक लाभ मिलेगा” केंद्रीय बजट पर CM योगी की पहली प्रतिक्रिया
हालांकि, इसमें कुछ कदम सकारात्मक हैं, जैसे बुनियादी ढांचे के लिए किए गए निवेश और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए योजनाएं, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह बजट भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में नए तरीके से जोड़ने के बजाय पुराने रास्तों पर चलने का आभास देता है। इस दृष्टिकोण से इसे 1991 और 2004 के बजट से तुलनित करना सही नहीं है, क्योंकि वे समय की आवश्यकता के अनुसार नए विचार और दिशा लेकर आए थे।