Caste Census: बीजेपी ने ओडिशा में ओबीसी, तो हरियाणा में एससी आरक्षण को लेकर बड़ा कदम उठाया है. बीजेपी ने यह तीर तो ओडिशा और हरियाणा में चलाया है, लेकिन इसके निशाने पर सीधे बिहार चुनाव माना जा रहा है. ऐसे में ये फैसला बिहार चुनाव पर कैसे असर डाल सकता है ये देखना काफी दिलचस्प होगा. बीजेपी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की तर्ज पर हिंदू-बहुल्य वोट बैंक को मजबूत किया और मतदाताओं को जाति से ऊपर उठकर वोट करने के लिए एकजुट किया. भाजपा के सुपरब्रांड नेताओं ने…एक है तो सेफ है… बटोगे तो कटोगे….जैसे नारें दे कर जातियों में बिखरे हिंदुओं को जोड़ने का काम किया.
सबसे बड़ा सवाल…..

2014 और 2019 के आम चुनावों और कई राज्य चुनावों में भारी जीत के साथ यह काफी हद तक साफ रहा कि भाजपा हिंदू वोटरों को एकजुट करने में सफल रही. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या कारण है जिसने भाजपा जैसी पार्टी को यू-टर्न लेने पर मजबूर कर दिया. अखिर ऐसी कौंन सी मजबूरी आ गयी कि भाजपा ने राजनीतिक पंडितों को चौंकाते हुए जाति जनगणना कराने का ऐलान कर दिया. हालांकि एक ओर कांग्रेस इस कदम का क्रेडिट ले रही है और कह रही है कि बीजेपी ने राहुल गांधी के लगातार दबाव के आगे घुटने टेक दिए तो दूसरी ओर भाजपा समर्थक इस कदम को बिहार चुनाव से जोड़ रहे है.
बीजेपी ने खेला मास्टरस्ट्रोक

इन सब के बीच भाजपा ने जाति आधारित राजनीति में एक मास्टरस्ट्रोक खेला है.यह फैसला तो उन्होंने ओडिशा और हरियाणा में लिया लेकिन इसका टार्गेट बिहार चुनाव माना जा रहा है जिससे बिहार की सियासत अब एक नए रंग में रंगने लगी है.
बिहार चुनाव में हो सकता है बड़ा असर?
इन दोनों फैसलों को बीजेपी की ओर से सामाजिक न्याय और जाति-आधारित राजनीति को मजबूत करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और माना जा रहा है कि इस फैसलों को अमल में लाकर बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में एक मॉडल की तरह पेश करेगी. बिहार में जाति-आधारित राजनीति बेहद महत्वपूर्ण है और ओबीसी तथा दलित वोटरों का समर्थन हासिल करना किसी भी पार्टी के लिए चुनाव जीतने की कुंजी है. बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा विपक्ष, खासकर आरजेडी-कांग्रेस जोर-शोर से उठाता रहा है. ऐसे में ओडिशा और हरियाणा में लिए गए फैसले बीजेपी को बिहार में ओबीसी और दलित वोटरों को आकर्षित करने में मदद कर सकते हैं.
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