Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि 2025 का आरंभ 29 मार्च 2025 से हो रहा है, जो कि एक विशेष और शुभ मुहूर्त है। यह नौ दिन तक चलने वाला पर्व विशेष रूप से देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व अत्यधिक है। मां शैलपुत्री पर्वतों के राजा हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं और उनकी पूजा विशेष रूप से भक्तों के जीवन में सकारात्मकता, शक्ति और समृद्धि का संचार करने के लिए की जाती है।
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मां शैलपुत्री का रूप और विशेषता

मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यधिक दिव्य और शक्तिशाली होता है। उन्हें नंदी पर सवार और हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका यह रूप भक्तों के लिए शक्ति, साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता है। उनके शरीर का रंग सफेद होता है, जो पवित्रता और निर्मलता का प्रतीक है। साथ ही, उनकी पूजा से जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर किया जाता है और व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।मां शैलपुत्री को न केवल शारीरिक शक्ति का स्रोत माना जाता है, बल्कि मानसिक शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है। जो लोग आत्मविश्वास और मानसिक शांति की तलाश में रहते हैं, उनके लिए मां शैलपुत्री की पूजा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा विधि सरल लेकिन अत्यधिक प्रभावी होती है। इस दिन के लिए विशेष रूप से ध्यान, जाप और हवन का आयोजन किया जाता है। पूजा के दौरान भक्त सफेद वस्त्र पहनते हैं, क्योंकि सफेद रंग मां शैलपुत्री का प्रिय रंग है। सबसे पहले, शुद्ध स्थान पर एक साफ आसन पर बैठकर पूजा आरंभ की जाती है। फिर, मां के चित्र या मूर्ति को सफेद फूलों से सजाया जाता है।
मां शैलपुत्री जाप मंत्र
पूजा में विशेष रूप से ‘ॐ शं शैलपुत्री देवयै नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है। यह मंत्र मां शैलपुत्री की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसके बाद भक्त नंदी की पूजा करते हैं और त्रिशूल को भी श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं।इसके अलावा, उपवासी रहकर व्रत रखने की परंपरा भी इस दिन की पूजा का हिस्सा होती है। व्रत रखने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है। इसके साथ-साथ पूजा में फल, दूध, दही, शहद आदि का भोग अर्पित किया जाता है।

मां शैलपुत्री की कथा
मां शैलपुत्री का जन्म हिमालय पर्वत पर हुआ था, और उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। उनकी पूजा से पहले दिन की शुरुआत होती है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है। इस दिन की पूजा से समृद्धि, बल, और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।