Chhath Puja 2025: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाने वाला चार दिवसीय छठ महापर्व आज उगते सूर्य को ‘ऊषा अर्घ्य’ अर्पित करने के साथ संपन्न हो गया। देशभर के नदियों, तालाबों और सरोवरों के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लाखों व्रती महिलाओं ने पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया और परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की लंबी उम्र तथा समाज में खुशहाली की कामना की।
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छठी मैया के गीतों से गूंजे घाट

छठ पूजा का चौथा दिन सबसे पवित्र और भावनात्मक होता है। जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्य की पहली किरणें फूटीं, श्रद्धालुओं ने एक स्वर में छठी मैया के गीत गुनगुनाए। व्रती महिलाएं सूप और डाला में ठेकुआ, गन्ना, नारियल, फल और अन्य पारंपरिक प्रसाद सजाकर जल में खड़ी थीं। सूर्य की लालिमा फैलते ही भक्तों ने जल और दूध से अर्घ्य अर्पित किया। यह दृश्य पूरे देश के घाटों पर एक दिव्य अनुभव बन गया।
36 घंटे का निर्जला व्रत पूर्ण
छठ पूजा की विशेषता इसकी कठोर साधना में है। खरना के बाद शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत आज सुबह अर्घ्य देने के साथ समाप्त हुआ। इस व्रत के दौरान व्रती बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहते हैं। अर्घ्य के बाद विधिवत प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया गया। यह व्रत न केवल शारीरिक सहनशक्ति की परीक्षा है, बल्कि आत्म-शुद्धि और आत्म-अनुशासन का प्रतीक भी है।
सूर्य और संतान के प्रति आभार का पर्व
छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह पर्व सूर्य देव, जो जीवन और ऊर्जा के स्रोत हैं, तथा छठी मैया, जो संतान की रक्षा करती हैं, के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है। उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा जीवन के हर चरण को सम्मान देने का संदेश देती है।
भक्ति, एकता और पर्यावरण संरक्षण की मिसाल

छठ पूजा ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, पारिवारिक एकता और पर्यावरण संरक्षण की अद्भुत मिसाल है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली और नेपाल तक इस पर्व की भक्ति और उत्साह देखने को मिला। छठ के गीतों की मधुर गूंज और दीपों की रोशनी ने वातावरण को दिव्यता से भर दिया।
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