JPC Shiv Sena Walkout : लोकतंत्र की हत्या की साजिश! तृणमूल-सपा-AAP के बाद, शिवसेना ने JPC से किया किनारा

Chandan Das
Shiv sena

JPC Shiv Sena Walkout : तृणमूल, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना खेमे ने संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति ( JPC) का बहिष्कार करने का फैसला किया है। इसकी घोषणा सोमवार को शिवसेना (उद्धव शिविर) सांसद संजय राउत ने की। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि इस समिति में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं होगा। दूसरी ओर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सोमवार रात तक यह तय नहीं कर पाया था कि इस समिति में हाट शिविर का कोई प्रतिनिधि होगा या नहीं। एक के बाद एक विपक्षी दलों द्वारा इस समिति से अपना नाम वापस लेने से उन पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है।

संजय राउत ने की घोषणा

सोमवार को संजय राउत ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा ‘मोदी सरकार दरअसल संविधान संशोधन विधेयक के जरिए लोकतंत्र की हत्या की साजिश रच रही है। वे जनता द्वारा चुनी गई सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे हैं। इस विधेयक को समीक्षा के लिए जेपीसी के पास भेजना उनकी एक चाल मात्र है।’ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कर दिया है कि हमारी पार्टी ऐसी किसी भी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजेगी।

तृणमूल और AAP ने किया किनारा

इससे पहले तृणमूल और AAP ने इस समिति से हटने की घोषणा की थी। शनिवार को तृणमूल के राज्यसभा नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने अपने ‘एक्स’ हैंडल पर कहा था कि तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी 130वें संविधान संशोधन विधेयक पर बनी संयुक्त संसदीय समिति में अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजेंगी। क्योंकि उन्हें लगता है कि यह एक नाटक है। दूसरी ओर रविवार को एक वीडियो संदेश में AAP सांसद संजय सिंह ने केंद्रीय विधेयक की कड़ी आलोचना करते हुए कहा “मोदी सरकार एक असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक विधेयक लेकर आई है। इस विधेयक का उद्देश्य गैर-BJP राज्यों की सरकारों को भंग करना और खरीदना विपक्षी नेताओं को जेल भेजना और देश के लोकतंत्र को नष्ट करना है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि इस समिति में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं होगा।

विपक्ष ने किया विधेयक का कड़ा विरोध

संयोग से केंद्र ने हाल ही में संसद में तीन विधेयक पेश किए हैं – 130वां संविधान संशोधन विधेयक केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनिक संशोधन विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2025। प्रस्ताव के अनुसार यदि प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री और केंद्र या राज्य के मंत्री लगातार 30 दिनों तक जेल में रहते हैं और पांच साल की कैद की सजा वाले आरोपों का सामना कर रहे हैं तो वे 31वें दिन से अपने पद खो देंगे। बुधवार को जैसे ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में यह विधेयक पेश किया विपक्ष ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया और विरोध में संसद में इसकी प्रतियां फाड़ दीं।

कांग्रेस और राजद का दावा है कि यह विधेयक संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है दोषी साबित होने तक निर्दोषता के सिद्धांत की अनदेखी करता है और राजनीतिक लाभ के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। ऐसे में विधेयक को 31 सदस्यीय संसदीय संयुक्त समिति के पास भेजा गया है।

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