Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने 14 से 18 वर्ष के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को सोमवार को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह एक नीतिगत मामला है, जिस पर निर्णय लेना सरकार और संबंधित संस्थाओं का अधिकार है, न्यायपालिका का नहीं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से कहा, “आप जानते हैं, नेपाल में जब इस तरह का प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई थी, तब क्या हुआ था?” इसके साथ ही उन्होंने याचिकाकर्ता को धन्यवाद देते हुए कहा कि अदालत इस याचिका पर आगे सुनवाई नहीं कर रही है।
याचिकाकर्ता की क्या थी मांग?
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चे मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के आदी हो गए हैं। इसके चलते उनकी मानसिक स्थिति और पढ़ाई पर नकारात्मक असर पड़ा है। याचिका में यह भी कहा गया कि यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अरब देशों में नाबालिगों के सोशल मीडिया उपयोग पर पहले से ही प्रतिबंध है, लेकिन भारत में इस तरह के नियम नहीं हैं।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म बच्चों की एकाग्रता, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवहार पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। माता-पिता के नियंत्रण के बावजूद बच्चे पूरी तरह सुरक्षित नहीं रह पा रहे हैं। इसीलिए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से 14 से 18 साल के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
हालांकि अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया पर नाबालिगों के उपयोग पर रोक एक नीतिगत निर्णय है। इसे केंद्र सरकार और संबंधित संस्थाओं द्वारा ही तय किया जाना चाहिए। न्यायपालिका इस विषय में दखल देने की स्थिति में नहीं है।CJI बीआर गवई की ‘नेपाल’ वाले उदाहरण ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि इस तरह के प्रतिबंधों के सामाजिक और व्यवहारिक परिणामों पर विचार करना जरूरी है। अदालत ने कोई निर्देश जारी किए बिना याचिका को खारिज कर दिया।
अदालत कोई कदम नहीं उठाएगी
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से स्पष्ट हो गया है कि किशोरों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित करने के लिए अदालत कोई कदम नहीं उठाएगी। इस मामले में नीति और समाज दोनों से जुड़े जटिल पहलुओं पर निर्णय लेना विधायी और कार्यकारी संस्थाओं का काम है।विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश और पेरेंटल कंट्रोल को बढ़ावा देना चाहिए। यद्यपि अदालत ने इस विषय में दखल नहीं दिया, लेकिन नीति निर्माताओं के लिए यह संकेत है कि बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है।
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