Dev Diwali 2024: दीपों की रौशनी…सुख-समृद्धि का त्योहार, त्रिपुरासुर वध के बाद स्वर्ग में जलते दीपों की कहानी…

देव दीपावली (Dev Diwali) के दिन घर, मंदिर और आंगन को दीयों से सजाना बेहद शुभ माना जाता है. खासतौर पर मंदिर, मुख्य द्वार और तुलसी के पौधे के पास दीया जलाना चाहिए.

Aanchal Singh
dev diwali

Dev Diwali 2024: हर साल कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के अवसर पर देव दीपावली (Dev Diwali) का पावन पर्व मनाया जाता है. इस दिन दीपावली की तरह ही चारों ओर दीयों की रोशनी से जगमगाहट की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली के दिन सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं, और उनके स्वागत में लोग दीये जलाते हैं. इस पर्व की असली भव्यता और रौनक काशी, यानी बनारस में देखी जा सकती है, जहां देव दीपावली की महिमा को देखने और अनुभव करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. इस साल देव दीपावली का पर्व 15 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा. आइए जानते हैं कि इस पावन दिन पर कितने दीये जलाने का महत्व होता है और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या कहती है…

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कितने दीये जलाएं?

बताते चले कि, देव दीपावली (Dev Diwali) के दिन घर, मंदिर और आंगन को दीयों से सजाना बेहद शुभ माना जाता है. खासतौर पर मंदिर, मुख्य द्वार और तुलसी के पौधे के पास दीया जलाना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन देवी-देवताओं और अपने इष्ट देव के नाम का दीया जलाना चाहिए. शुभता के प्रतीक माने जाने वाले ये दीये 11, 21, 51 या 108 की संख्या में जलाए जा सकते हैं. जो श्रद्धालु अधिक दीये जलाना चाहें, वे बिना किसी संख्या की सीमा के अनुसार भी दीये प्रज्वलित कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त, भगवान शिव, विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा का भी विधान है. इस दिन पूजा स्थल पर अखंड दीया जलाना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि वह रातभर जलता रहे.

तुलसी के पौधे के पास दीया जलाने का महत्व

आपको बता दे कि, देव दीपावली (Dev Diwali) के दिन तुलसी के पौधे के पास दीया जलाना काफी शुभ माना जाता है. तुलसी को पवित्र और देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, और इस दिन तुलसी के पास दीया जलाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इसे देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक विशेष उपाय भी माना जाता है.

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पौराणिक कथा: त्रिपुरासुर वध और देव दीपावली का जन्म

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव दीपावली (Dev Diwali) के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस था जो देवताओं और पृथ्वी पर आतंक मचाए हुए था. उसके वध के बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव की प्रशंसा और धन्यवाद अर्पण के लिए स्वर्ग में दीप जलाकर दीवाली मनाई थी. इस खुशी में देवताओं ने भगवान शिव के पवित्र धाम काशी में गंगा के तट पर दीप प्रज्ज्वलित कर उनका धन्यवाद किया. कहा जाता है कि तब से ही हर साल इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है.

देव दीपावली का महत्व

देव दीपावली (Dev Diwali) के पर्व का विशेष महत्व काशी में देखने को मिलता है. कार्तिक पूर्णिमा की रात को काशी के घाटों पर दीपों की झिलमिलाहट और मंत्रोच्चारण से वातावरण एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है. इसे देवताओं के स्वागत और भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर लोग गंगा स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं और भगवान शिव, विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं. इस प्रकार, देव दीपावली न केवल रोशनी का पर्व है, बल्कि यह देवताओं की कृपा प्राप्त करने और अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भरने का एक अद्वितीय अवसर भी है.

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