Devendra Fadnavis-Eknath Shinde Meeting: महाराष्ट्र में होने वाले नगर पालिका चुनावों से पहले सत्तारूढ़ गठबंधन महा-युति (भारतीय जनता पार्टी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना) में तनाव की स्थिति बनी हुई थी। दोनों दलों के बीच मतभेद इतने गहरे हो गए थे कि राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई थी कि बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। यह स्थिति गठबंधन की स्थिरता पर सवाल खड़े कर रही थी।
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देर रात नागपुर में अहम बैठक

हालांकि, सोमवार (8 दिसंबर) की देर रात नागपुर में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच हुई बंद कमरे की बैठक ने हालात बदल दिए। करीब डेढ़ घंटे चली इस बैठक में दोनों नेताओं ने कई अहम मुद्दों पर चर्चा की। बैठक में चंद्रशेखर बावनकुले और रवींद्र चव्हाण भी मौजूद थे। अंततः यह तय हुआ कि आगामी नगर पालिका चुनाव महायुति के तौर पर संयुक्त रूप से लड़े जाएंगे।
महानगर पालिका चुनावों की रणनीति
सूत्रों के अनुसार, बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि मुंबई, ठाणे समेत पूरे महाराष्ट्र की महापालिकाओं के चुनाव महायुति के रूप में मिलकर लड़े जाएंगे। इसके लिए स्थानीय स्तर पर नेताओं के बीच बातचीत अगले दो से तीन दिनों में शुरू की जाएगी। इस कदम से गठबंधन की एकजुटता का संदेश जनता तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।
शिंदे की नाराजगी दूर करने की कोशिश
बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि महायुति के सहयोगी दल एक-दूसरे के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करेंगे। बीजेपी और शिवसेना के पदाधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं को एक-दूसरे की पार्टी में प्रवेश न देने पर सहमति बनी। दरअसल, कुछ दिन पहले इसी मुद्दे को लेकर एकनाथ शिंदे नाराज हो गए थे। उनकी नाराजगी इतनी बढ़ गई थी कि शिवसेना ने कैबिनेट बैठक का बहिष्कार तक कर दिया था।
मंत्रियों की असहमति और फैसलों पर विवाद
एकनाथ शिंदे के मंत्रियों को इस बात से भी नाराजगी थी कि उनकी जानकारी के बिना उनके द्वारा लिए गए फैसले रद्द कर दिए जा रहे थे। इससे शिवसेना के भीतर असंतोष बढ़ रहा था। माना जा रहा है कि नागपुर की बैठक में इन सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई और समाधान निकालने की कोशिश की गई।
गठबंधन में नई गर्माहट
बैठक के बाद यह संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी और शिवसेना के बीच रिश्तों में फिर से गर्माहट लौट आई है। दोनों दलों ने मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लेकर यह संदेश दिया है कि महायुति में मतभेद के बावजूद गठबंधन कायम रहेगा। यह फैसला न केवल आगामी निकाय चुनावों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि राज्य की राजनीति में भी बड़ा असर डाल सकता है।
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