Dhananjay Singh Case: हाईकोर्ट से बड़ा झटका, पूर्व सांसद धनंजय सिंह को राहत नहीं मिली

क्या पूर्व सांसद धनंजय सिंह की कानूनी मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ गईं? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अचानक किस बड़े आपराधिक मामले में उनकी याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके चलते उन्हें बड़ा झटका लगा, और अब बाहुबली नेता के पास आगे क्या कानूनी विकल्प बचा है, जानें पूरी खबर!

Chandan Das
Dhananjay Singh Case
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Dhananjay Singh Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व सांसद और तत्कालीन रारी विधायक धनंजय सिंह को एक बड़ा झटका देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। यह याचिका 2002 के नदेसर टकसाल शूटआउट से जुड़े गैंगस्टर एक्ट मामले में आरोपियों को ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी। कोर्ट ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि असामाजिक गतिविधियों को रोकना राज्य का पवित्र दायित्व है और कोई भी व्यक्ति राज्य के काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

Dhananjay Singh Case: कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए क्या कहा?

पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने यूपी गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 के तहत चार आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। अदालत में इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस लक्ष्मी कांत शुक्ला की सिंगल बेंच ने धनंजय सिंह की क्रिमिनल अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध केवल राज्य और समाज के खिलाफ होते हैं, न कि किसी व्यक्तिगत व्यक्ति के खिलाफ।

Dhananjay Singh Case: ‘पीड़ित’ के अधिकार पर अदालत का रुख

कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि अपीलकर्ता इस मामले में घायल और शिकायतकर्ता हैं, वे सीआरपीसी की धारा 2(wa) और बीएनएसएस की धारा 2(1)(y) के तहत परिभाषित ‘पीड़ित’ शब्द के दायरे में नहीं आते। इसका मतलब यह था कि धनंजय सिंह को इस मामले में अपील दायर करने का अधिकार नहीं था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि निवारक उपायों का कर्तव्य केवल राज्य के अधिनियम के तहत आता है, और ऐसी कार्रवाई केवल राज्य ही कर सकता है।

राज्य के अधिनियम में हस्तक्षेप पर सख्त टिप्पणी

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “निवारक उपाय अपनाने का कर्तव्य विशेष रूप से ‘राज्य के अधिनियम’ के दायरे में आता है और ऐसी कार्रवाई केवल राज्य द्वारा ही की जानी चाहिए।” अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह टिप्पणी इस बात पर जोर देती है कि असामाजिक गतिविधियों पर नियंत्रण और उन पर कार्रवाई का अधिकार केवल राज्य के पास है।

2002 का नदेसर टकसाल शूटआउट: क्या था मामला?

यह मामला 4 अक्टूबर 2002 का है, जब वाराणसी के कैंट थाना क्षेत्र में स्थित नदेसर के टकसाल सिनेमा हॉल के पास तत्कालीन विधायक धनंजय सिंह की गाड़ी पर जान से मारने की नीयत से अंधाधुंध फायरिंग की गई थी। इस हमले में AK-47 जैसे ऑटोमेटिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था, और यह वाराणसी का पहला ‘ओपन शूटआउट’ था। इस हमले में धनंजय सिंह, उनके गनर, ड्राइवर और अन्य लोग घायल हुए थे।

गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा और ट्रायल कोर्ट का फैसला

धनंजय सिंह ने इस हमले के बाद बाहुबली विधायक अभय सिंह, एमएलसी विनीत सिंह, संदीप सिंह, संजय सिंह, विनोद सिंह और सतेंद्र सिंह उर्फ बबलू समेत अन्य अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। हालांकि, 29 अगस्त 2025 को वाराणसी के स्पेशल जज, गैंगस्टर एक्ट सुशील कुमार खरवार ने साक्ष्य के अभाव में चारों आरोपियों को बरी कर दिया। इसके बाद धनंजय सिंह ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पीड़ित की परिभाषा पर हुई बहस

सुनवाई के दौरान धनंजय सिंह के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि वह खुद इस मामले में घायल और शिकायतकर्ता थे, उन्हें अपील दायर करने का अधिकार है। उनका कहना था कि बीएनएसएस की धारा 413 के तहत उन्हें यह अधिकार दिया गया है। वहीं, राज्य सरकार की तरफ से एजीए ने तर्क दिया कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध केवल समाज और राज्य के खिलाफ होते हैं, न कि व्यक्तिगत रूप से किसी शिकायतकर्ता के खिलाफ। अदालत ने राज्य के इस तर्क को स्वीकार करते हुए धनंजय सिंह की अपील खारिज कर दी।

अदालत का फैसला: अपील का कोई अधिकार नहीं

अंततः अदालत ने यह स्पष्ट किया कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराधों में ‘पीड़ित’ के रूप में व्यक्तिगत शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार नहीं की जा सकती। इस प्रकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धनंजय सिंह की क्रिमिनल अपील को खारिज कर दिया।

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