Rama Ekadashi 2025: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को “रमा एकादशी” के नाम से जाना जाता है। यह व्रत दीपावली से ठीक पहले आता है, जिस कारण इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से पापों का नाश होता है और बैकुंठ धाम की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विधिपूर्वक रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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क्या खाएं रमा एकादशी व्रत में?
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि, रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत में व्रती को विशेष प्रकार का सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। इस दिन सभी प्रकार के फल और सूखे मेवे खाए जा सकते हैं। साथ ही आलू, शकरकंद, अरबी, और साबूदाना का सेवन भी व्रत में मान्य है। सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा और राजगीरा आटे से बने पूड़ी, पराठे या पकौड़ी जैसे व्यंजन व्रत में खाए जा सकते हैं। ये सभी व्रत में पाचन के लिए अनुकूल माने जाते हैं।
डेयरी उत्पादों और सात्विक मसालों की अनुमति
बताते चले कि, दूध, दही, छाछ, पनीर और देसी घी का सेवन इस दिन लाभकारी माना जाता है। मसालों में केवल सेंधा नमक, काली मिर्च, हरी मिर्च, अदरक और जीरा पाउडर जैसी सात्विक वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
रमा एकादशी पर किन चीजों का करें परहेज?
इस दिन चावल, गेहूं, जौ, मक्का और सभी प्रकार की दालों का सेवन वर्जित है। साथ ही लहसुन, प्याज, मांस, मछली और मदिरा जैसे तामसिक पदार्थों से पूरी तरह दूरी बनानी चाहिए। व्रत में साधारण नमक का प्रयोग निषिद्ध है, केवल सेंधा नमक का ही उपयोग करें। कुछ परंपराओं के अनुसार, गोभी, गाजर, पालक, बैंगन और शलजम जैसी सब्जियों का सेवन भी वर्जित माना जाता है।
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संयम और भक्ति से प्राप्त करें पुण्यफल
व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। मन, वचन और कर्म से सात्विक रहना व्रती का कर्तव्य होता है। किसी के प्रति मन में बुरे विचार नहीं लाने चाहिए। एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि तुलसी माता भी इस दिन व्रत करती हैं। यदि संभव हो तो रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु के नाम का जप और भजन-कीर्तन करें। व्रत के अंत में भगवान विष्णु से पूजा के दौरान हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। यह प्रक्रिया भक्ति का भाव और आत्मशुद्धि दर्शाती है।
अस्वीकरण:इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों, मान्यताओं, पंचांग और विभिन्न प्रवचनों पर आधारित है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे अंतिम सत्य न मानें और अपनी श्रद्धा एवं विवेक से कार्य करें।
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