Eid al-Adha 2025: देशभर में आज यानी 7 जून को बकरीद का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार बकरीद का त्योहार हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है।
बकरीद के त्योहार को ईद उल अजहा, ईद उल जुहा, बकरा ईद और ईद उल बकरा के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ने के साथ साथ जानवरों की कुर्बानी भी देते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
क्यों दी जाती है कुर्बानी?

बकरीद का त्योहार हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। इस दिन इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं। इस्लाम में केवल हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है। कुर्बानी का गोश्त अकेले अपने परिवार के लिए नहीं रखा जाता है। बल्कि इसके तीन हिस्से होते हैं जिनमें पहला हिस्सा गरीबों के लिए होता है, दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों का होता है और आखिरी यानी तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए रखा जाता है।
कुर्बानी में कितने लोग होते हैं शामिल?
कुर्बानी को लेकर कई सारे नियम होते हैं जिनका पालन करना पड़ता है। कुर्बानी के लिए जानवर चुनते वक्त अलग अलग हिस्से है। जहां बड़े जानवर यानी भैंस पर सात हिस्से होते हैं तो वहीं बकरे जैसे छोटे जानवरों पर महज एक हिस्सा होता है। यानी अगर कोई व्यक्ति भैंस या ऊंट की कुर्बानी कराता है तो उसमें सात लोगों को शामिल किया जाता है। लेकिन अगर कोई बकरे की कुर्बानी कराता है तो वो केवल एक व्यक्ति के नाम ही होता है।
किन जानवरों की कुर्बानी देता उचित
इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों का कहना है कि बकरीद में ऐसे जानवरों की कुर्बानी को ही जायज माना जाता है जो जानवर सेहतमंद होते हैं। अगर जानवर को किसी भी तरह की कोई बीमारी या फिर तकलीफ है तो अल्लाह ऐसे जानवरों की कुर्बानी को स्वीकार नहीं करता है।

