Opposition vs Election Commission: हाल ही में कांग्रेस समेत कई अन्य विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से मांग की थी कि उन्हें मतदाता सूची का ‘मशीन रीडेबल डेटा’ (Machine Readable Data) प्रदान किया जाए। विपक्ष का कहना था कि इस डेटा की मदद से वे मतदाता सूची का विश्लेषण बेहतर तरीके से कर पाएंगे और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकेगी। हालांकि अब चुनाव आयोग ने इस मांग को खारिज करते हुए साफ कर दिया है कि यह नियमों के तहत संभव नहीं है।
चुनाव आयोग ने नियमों का हवाला देते हुए दी सफाई
चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कहा है कि जो जानकारी विपक्षी दल मांग रहे हैं, वह मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं के अंतर्गत उपलब्ध नहीं कराई जा सकती। आयोग ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में वह सभी राजनीतिक दलों को मतदाता सूची की हार्ड कॉपी और सॉफ्ट कॉपी (पेन ड्राइव के माध्यम से) उपलब्ध कराता है। यह प्रक्रिया लंबे समय से चली आ रही है और यह पूरी तरह से वैध और मान्य है।
डेटा से छेड़छाड़ की आशंका जताई आयोग
आयोग ने विपक्ष की मांग को अस्वीकार करते हुए चिंता जाहिर की कि यदि मशीन रीडेबल डेटा राजनीतिक दलों को दिया गया, तो मतदाता सूची में बदलाव करने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। आयोग का कहना है कि यह तकनीकी डेटा अगर गलत हाथों में चला गया, तो इससे मतदाता भ्रमित हो सकते हैं और मतदान के दिन अफरा-तफरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में चुनावी प्रक्रिया की शुचिता और निष्पक्षता पर सवाल उठ सकता है।
राजनीतिक दलों को मिल रही है मौजूदा सुविधा
चुनाव आयोग ने दोहराया कि सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को मतदाता सूची की हार्ड कॉपी और डिजिटल फॉर्मेट (पेन ड्राइव में सॉफ्ट कॉपी) पहले से ही दी जा रही है। इसमें मतदाता का नाम, पता और अन्य बुनियादी जानकारी होती है, जो कि चुनावी तैयारियों के लिए पर्याप्त है। आयोग के अनुसार, मशीन रीडेबल डेटा प्रदान करना तकनीकी और कानूनी दोनों दृष्टिकोण से संवेदनशील मुद्दा है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
आयोग का स्पष्ट संदेश: पारदर्शिता बनी रहे
चुनाव आयोग ने अंत में कहा कि वह चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लेकिन किसी भी नई मांग पर विचार करने से पहले यह देखा जाएगा कि वह मौजूदा नियमों और सुरक्षा उपायों के अंतर्गत आती है या नहीं। मशीन रीडेबल डेटा की मांग वर्तमान में इन दोनों मानकों पर खरी नहीं उतरती, इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। विपक्षी दलों की ओर से पारदर्शिता के नाम पर की गई इस मांग को चुनाव आयोग ने सुरक्षा और नियमों की दृष्टि से खतरनाक बताया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष इस फैसले को लेकर क्या अगला कदम उठाता है।
