Rukhmabai Divorce Case: इतिहास की बाते जानने की सबकी इच्छा होता है। फिर चाहे वो कहानी किसी से भी क्यों न जुड़ी हो। आज के समय में तलाक सबके लिए आम बात हो गई है, किसी को भी अगर अपने पार्टनर से कोई समस्या होती है तो वो तलाक जैसा ऑप्शन यानी की अलग होने का फैसला ले सकता है। लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे भारत में सबसे पहले तलाक किसने लिया था? अगर नहीं तो आइए आज आपको बताते हैं इससे जुड़ी पूरी कहानी…
किसने लिया था सबसे पहले तलाक?

भारत में एक वक्त वो भी था जब किसी को तलाक का नाम तक नहीं पता था, तब एक महिला ने कानूनन तलाक लेकर इसकी शुरुआत की थी। इनका जन्म साल 1864 में हुई थी और इनकी मां ने इनकी शादी 11 साल की उम्र में ही कर दी थी। हालांकि वो पति के साथ कभी भी रहने नहीं गईं। इनकी मां ने भी दूसरी शादी कर ली थी।
हालांकि उनके पिता ने ही उन्हें इस बात की प्रेरणा दी थी कि उन्हें अपने पिता के घर नहीं जाना चाहिए क्योंकि वो इस बात के खिलाफ थे कि कम उम्र में कोई भी लड़की कम उम्र में गर्भवती हो। जिसके बाद रखुबाई ने लंदन के स्कूल से डिग्री ली थी।
पति के साथ रहने पर इनकार को लेकर किया विरोध…
1885 में सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले में न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि किसी भी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके पति के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह निर्णय महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बन गया।
महारानी विक्टोरिया ने किया सपोर्ट…
आपको बता दें कि, मामले पर ब्रिटिश की गंभीरता के चलते ब्रिटिश साम्राज्य की महारानी विक्टोरिया ने इन्हें सपोर्ट किया था। जिसके बाद इनके पक्ष में फैसला हुआ और ये शादी को निरस्त करने का आदेश दिया।
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भविष्य के लिए प्रेरणा

रुखमाबाई की ये साहसिक लड़ाई से रुखमाबाई भारत के लिए प्रेरणा हैं। ये बाल विवाह और महिला अधिकारों के खिलाफ बोलने वाली पहली महिलाओं में शामिल किया। उनकी कहानी आज भी इस बात का प्रतीक है कि बिना सहमति के कोई भी विवाह वैध नहीं हो सकता।
समाज को झकझोरने वाली आवाज
रुखमाबाई का संघर्ष न केवल एक व्यक्तिगत लड़ाई थी, बल्कि इसने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि महिलाओं की इच्छा और स्वतंत्रता को भी उतनी ही मान्यता दी जानी चाहिए जितनी पुरुषों की। यह मामला आज भी भारत के कानूनी और सामाजिक इतिहास में महिला सशक्तिकरण के सबसे मजबूत उदाहरणों में से एक माना जाता है।
