Prime Chaupal: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे मलिहाबाद के ग्राम पंचायत जौरिया में सरकार के विकसित भारत के संकल्पों को ठेंगा दिखाती ये तस्वीरें बयां कर रही हैं यहां रहने वाले ग्रामीणों के उस दर्द को जिनको ना जाने कितने बरसों से ग्रामीण अपने सीने में दबाए हैं।गांव में विकास की बाट जोहकर थक चुकी ये दीवारें आज भी उधड़ी अस्मिता को संजोए हुए अपने कायाकल्प के लिए अच्छे दिनों का इंतजार कर रही हैं।सरकारें बदलती हैं प्रधान बदल जाते हैं लेकिन नहीं बदलती तो केवल गांवों की वो सारी तस्वीरें जो विकास का इंतजार करते-करते अब दम तोड़ने के कगार पर हैं।
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जौरिया में सुविधाओं से अछूते ग्रामीण

ग्राम पंचायत जौरिया में रामदेवी यादव प्रधान हैं जिन्होंने जनता से वादे किए और सरकार से दावा किया गांव की तस्वीर बदल देने का लेकिन सरकारी योजनाओं के धरातल पर पहुंचने का ग्रामीण आज भी इंतजार मात्र कर रहे हैं।इंतजार उस विकास के जमीनी स्तर पर दिखाई देने का जो सरकारी दस्तावेजों में तो देखने को मिला लेकिन गांव अब भी उससे महरुम है।ये सारी तस्वीरें हैं विकास खंड मलिहाबाद के ग्राम पंचायत जौरिया की जहां विकास के नाम पर महज औपचारिकता है। सड़क के किनारे गंदगी का अंबार है,नालियों में पानी के निकलने की जगह प्लास्टिक और कचरे की भरमार है,सुविधाओं से अछूते यहां ग्रामीण हैं और इनसे बेखबर हैं गांव के प्रधान।
स्वच्छ भारत अभियान के तहत आवंटित करोड़ों रुपये का गबन

केंद्र और प्रदेश सरकार गांवों के लिए हर साल करोड़ों रुपये की योजनाएं लाती है पंचायतों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत करोड़ों रुपये खर्च कर कूड़ा निस्तारण केंद्र बनाए गए जिसका मकसद था गांवों से निकलने वाले कूड़े से खाद बनाकर बिक्री से पंचायत की आय बढ़ाई जाएगी लेकिन गांव में बना निस्तारण केंद्र पर लटके ताले सरकार की ऐसी योजनाओं को मुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं।सवाल यही है पंचायतों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत आवंटित करोड़ों रुपये कहां गया।ग्रामीणों का कहना है साफ-सफाई के नाम पर गांव में कुछ नहीं हुआ इसके अलावा जब आवास के बारे में लोगों से सवाल पूछा तो उनका जवाब चौंकाने वाला रहा।
विकसित भारत का संकल्प कैसे होगा पूरा,बड़ा सवाल?

विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने का पहला कदम गांवों के विकास की शुरुआत से है लेकिन गांव में आज भी टूटी-फूटी सड़कें,सड़क किनारे कूड़े का ढेर और नालियों में बजबजाती गंदगी इस तरह की तस्वीरें सरकार के सपने को पूरा करने में अवरोधक प्रतीत होती है।सरकारें जो धनराशि गांवों के विकास के लिए आवंटित करती वो कहां जा रहा है इसका जवाब किसी के पास नहीं है अगर गांव में आवास के पात्र लोग नहीं है इन योजनाओं का लाभ किसको मिल रहा ऐसे तमाम सवाल हैं जो जिम्मेदारों के तरफ मुंह बाए खड़े हैं।