Delhi Pollution 2025: दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई इलाकों में 400 के पार पहुंच गया है, जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। इस बीच नीति आयोग के पूर्व CEO ने सुप्रीम कोर्ट पर पटाखेबाज़ी को जीवन से ऊपर रखने का आरोप लगाते हुए तीखा हमला बोला है।
‘श्वास लेने का अधिकार या पटाखेबाज़ी?’
पूर्व CEO ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:”दिल्ली की वायु गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति में है। कई इलाके ‘रेड ज़ोन’ में हैं और AQI 400 के पार जा चुका है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जीवन और सांस लेने के अधिकार की तुलना में पटाखे फोड़ने के अधिकार को वरीयता दी है। अगर लॉस एंजेलेस, बीजिंग और लंदन जैसे शहर प्रदूषण नियंत्रित कर सकते हैं, तो दिल्ली क्यों नहीं?”उन्होंने आगे लिखा कि अब एक समन्वित कार्ययोजना की सख्त ज़रूरत है, जिसमें शामिल हों:
खेतों और औद्योगिक कचरे को जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध
थर्मल पावर प्लांट्स और ईंट भट्ठों को क्लीन टेक्नोलॉजी से अपग्रेड या बंद करना
2030 तक पूरे ट्रांसपोर्ट सिस्टम को इलेक्ट्रिक में परिवर्तित करना
ठोस अपशिष्ट का पूर्ण पृथक्करण और प्रबंधन सुनिश्चित करना
Delhi’s air quality lies in shambles: 36/38 monitoring stations have hit the 'red zone,' AQI is above 400 in key areas. The Hon. Supreme Court in its wisdom has prioritised the right to burn crackers over the right to live and breathe. Delhi remains among the world’s most…
— Amitabh Kant (@amitabhk87) October 21, 2025
दिवाली पर मिली थी ग्रीन पटाखों की इजाजत
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर शर्तों के साथ ‘ग्रीन क्रैकर्स’ जलाने की अनुमति दी थी। हालांकि यह साफ निर्देश दिया गया था कि सिर्फ कम प्रदूषण वाले पटाखों का इस्तेमाल हो। लेकिन शनिवार से सोमवार तक दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम समेत पूरे एनसीआर में धड़ल्ले से परंपरागत और भारी धुआं छोड़ने वाले पटाखों का इस्तेमाल हुआ।
परिणामस्वरूप दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी (400+ AQI) में पहुंच गई। मंगलवार सुबह 7 बजे नोएडा और गुरुग्राम का AQI क्रमशः 407 और 402 रिकॉर्ड किया गया। कई जगहों पर दृश्यता इतनी घट गई कि वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
अब कौन है जिम्मेदार?
पूर्व नीति आयोग अधिकारी का यह बयान प्रदूषण पर नीतिगत और न्यायिक अक्षमता पर सवाल खड़ा करता है। दिल्ली हर साल दिवाली के बाद इसी संकट से जूझती है, लेकिन स्थायी समाधान अब तक सामने नहीं आया। इस बार न्यायपालिका की अनुमति और उसके बाद बिगड़ते हालात ने बहस को और तेज कर दिया है।
जहां एक ओर त्योहार मनाने का अधिकार है, वहीं दूसरी ओर सांस लेने का अधिकार उससे कहीं बड़ा मौलिक अधिकार है। दिवाली के बाद दिल्ली में जो हालात बने हैं, वे यह दर्शाते हैं कि सिर्फ आदेश जारी करना काफी नहीं उनका पालन सुनिश्चित करना और दीर्घकालिक नीतियां लागू करना अब समय की मांग है।
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