RSS Controversy: कर्नाटक में पंचायत विभाग के एक सरकारी कर्मचारी प्रवीण कुमार के आरएसएस की सेंचुरी सेलिब्रेशन में शामिल होने के कारण निलंबन ने राजनीतिक गर्माहट बढ़ा दी है। प्रवीण कुमार ने रायचूर जिले के लिंकासुगुर में आयोजित आरएसएस के 100 साल पूरे होने के कार्यक्रम में संघ की वर्दी पहनकर परेड में हिस्सा लिया था। इस तस्वीर के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद विभागीय जांच शुरू हुई और अंततः सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया।
क्या है मामला?
आरएसएस के सेंचुरी समारोह में सरकारी कर्मचारी का संघ की वर्दी पहनकर परेड में भाग लेना कर्नाटक कांग्रेस सरकार को विवाद में फंसा गया है। इस घटना के बाद कर्नाटक सरकार ने प्रवीण कुमार के खिलाफ कार्रवाई करते हुए निलंबन की कार्रवाई की। कांग्रेस का तर्क है कि सेवा नियमों के तहत सरकारी कर्मचारियों को किसी राजनीतिक संगठन की गतिविधियों में खुले तौर पर हिस्सा लेने की अनुमति नहीं है। जबकि बीजेपी का कहना है कि आरएसएस कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है और इसलिए इसमें भाग लेने पर सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हटाना अनुचित है।
राजनीतिक बयानबाजी और सियासी दबाव
बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्य ने इस निलंबन को पूरी तरह गैरकानूनी करार दिया है। उनका कहना है कि कोर्ट पहले ही कह चुका है कि सरकारी कर्मचारी आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं। अगर मामला कोर्ट में गया तो इस निलंबन को खारिज कर दिया जाएगा।वहीं कांग्रेस के अंदर भी आरएसएस को लेकर मतभेद उभर रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे ने कर्नाटक में आरएसएस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। हालांकि उस समय उनकी मांग पूरी नहीं हुई, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की सरकार ने संघ की गतिविधियों को काबू में करने के लिए नए कदम उठाए हैं।
सरकारी संपत्ति पर प्रतिबंध की तैयारी
सूत्रों के मुताबिक, कर्नाटक कांग्रेस सरकार अब संघ की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में संघ की शाखाओं के संचालन पर रोक लगाने की योजना बना रही है। क्योंकि आमतौर पर आरएसएस शाखाएं सरकारी संपत्ति का उपयोग स्वयंसेवकों के शारीरिक व्यायाम और अन्य कार्यक्रमों के लिए करती हैं। कांग्रेस सरकार का कहना है कि सरकारी संपत्ति का राजनीतिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
क्या कहती है सेवा नियमावली?
सरकारी सेवा नियमों के तहत कर्मचारियों को राजनीतिक दल या संगठन के प्रचार-प्रसार में खुले तौर पर भाग लेने की मनाही है, खासकर जब वे सरकारी कार्य में लगे हों। हालांकि आरएसएस को कई बार सामाजिक संगठन कहा जाता रहा है, लेकिन इसकी राजनीतिक पहचान भी है, जो इस विवाद को और बढ़ा रहा है। कर्नाटक में आरएसएस से जुड़ी यह घटना न केवल एक सरकारी कर्मचारी के निलंबन तक सीमित है, बल्कि इससे राज्य में राजनीतिक वातावरण भी गरमाया है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। आने वाले दिनों में यह मामला और अधिक तूल पकड़ सकता है, खासकर जब राज्य सरकार संघ की गतिविधियों पर सख्ती बढ़ाने की तैयारी कर रही है।
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