Government Schools: यूपी में कम हो जाएंगे परिषदीय स्कूल, बसपा प्रमुख मायावती ने विलय पर जताया विरोध

50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को आसपास के अन्य स्कूलों में मिलाने का फैसला लिया गया है। राज्य में करीब एक लाख 37 हजार परिषदीय स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें 27,764 स्कूल ऐसे हैं जहां 50 से भी कम छात्र पढ़ते हैं।

Akanksha Dikshit
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Merger of government schools: उत्तर प्रदेश सरकार ने परिषदीय स्कूलों में छात्रों की संख्या को ध्यान में रखते हुए उनमें विलय की योजना को अमलीजामा पहनाने का निर्णय लिया है। 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को आसपास के अन्य स्कूलों में मिलाने का फैसला लिया गया है। राज्य में करीब एक लाख 37 हजार परिषदीय स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें 27,764 स्कूल ऐसे हैं जहां 50 से भी कम छात्र पढ़ते हैं।

सरकार का तर्क है कि ऐसे स्कूलों के संचालन पर होने वाले खर्च को कम किया जा सके, इसीलिए इनका विलय जरूरी है। यह निर्णय अगले शैक्षणिक सत्र 2025-26 से लागू किया जाएगा, और इसके लिए 13 या 14 नवंबर को जिलावार बैठक कर ऐसे स्कूलों की सूची तैयार की जाएगी।

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मायावती ने किया विरोध: गरीब बच्चों के अधिकार का हो रहा हनन

बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने सरकार के इस कदम की कड़ी निंदा करते हुए इसे दलित, वंचित और गरीब वर्ग के बच्चों के अधिकारों का हनन बताया है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर बयान जारी करते हुए कहा कि स्कूलों को बंद करने और विलय करने का यह फैसला गलत है। मायावती ने कहा कि शिक्षा में सुधार के बजाय स्कूलों को बंद करने का निर्णय सरकार की गरीब-विरोधी नीति को दर्शाता है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “ऐसे में गरीब बच्चे कहां पढ़ेंगे और उन्हें शिक्षा कैसे मिलेगी?”

बसपा प्रमुख ने साधा निशाना

मायावती (Mayawati) ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में भी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का बुरा हाल है, जिससे गरीब परिवार के बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित हैं। उन्होंने ओडिशा सरकार के उस फैसले पर भी निशाना साधा, जिसमें कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया गया है। मायावती का कहना है कि ऐसी जनविरोधी नीतियों के कारण लोग मजबूरन प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिला दिला रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह परिषदीय स्कूलों की स्थिति सुधारने पर ध्यान दे, न कि इन्हें बंद करने की दिशा में कदम उठाए।

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संविधान में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का है प्रावधान

भारत के संविधान के अनुच्छेद-45 के अंतर्गत 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति और 2009 के नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत भी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने की प्राथमिकता दी गई है। राज्य सरकार द्वारा 300 की आबादी पर 1 किलोमीटर की दूरी में एक प्राथमिक विद्यालय और 800 की आबादी पर 3 किलोमीटर की दूरी में उच्च प्राथमिक विद्यालय स्थापित करने का मानक निर्धारित किया गया है। ऐसे में सरकार का यह विलय का निर्णय, खासकर ग्रामीण इलाकों के बच्चों के लिए शिक्षा का पहुंचा और कठिन बना सकता है।

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विलय से शिक्षा का अधिकार हो सकता है प्रभावित

विशेषज्ञों का मानना है कि परिषदीय स्कूलों का विलय करने से स्थानीय स्तर पर बच्चों की शिक्षा तक पहुंच पर असर पड़ सकता है। दूरदराज के इलाकों में बच्चों को शिक्षा के लिए दूर जाना होगा, जिससे स्कूल छोड़ने की संभावना भी बढ़ सकती है। सरकारी स्कूलों की सुविधा कम होने से शिक्षा का अधिकार कमजोर हो सकता है, जिससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब और पिछड़े तबके के बच्चों का नुकसान हो सकता है।

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शिक्षा में सुधार की जरूरत, न कि बंद करने की नीति

सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। स्कूलों को बंद करने के बजाय इनकी बुनियादी सुविधाओं में सुधार और शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के बजाय उनका विलय करने का निर्णय कमजोर वर्गों के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ जैसा है। शिक्षा सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है, और इस पर किसी भी प्रकार की कमीशान नीति लागू करना अनुचित है।

इस मुद्दे पर सरकार को गरीब और जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई पर असर डालने वाले निर्णयों को पुनर्विचार करना चाहिए। विलय की नीति को लागू करने के बजाय शिक्षा में सुधार, बजट का सही उपयोग और ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने पर जोर देना चाहिए ताकि सभी बच्चों को समान और नि:शुल्क शिक्षा मिल सके।

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