Guinea Bissau: तख्तापलट से हड़कंप! सेना ने लिया कंट्रोल, सीमाएं बंद, जानें किस देश के राष्ट्रपति लापता?

पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी-बिसाऊ में चुनावों के महज़ तीन दिन बाद ही सेना ने तख्तापलट कर दिया है और देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। देश में आपातकाल लागू करते हुए सभी सीमाएं बंद कर दी गई हैं।

Nivedita Kasaudhan
Guinea Bissau
तख्तापलट से हड़कंप!

Guinea Bissau: पश्चिम अफ्रीका के छोटे देश गिनी-बिसाऊ में बुधवार, 26 नवंबर 2025 को हालात अचानक बिगड़ गए। राजधानी बिसाऊ में दोपहर के समय तेज गोलीबारी की आवाजों ने पूरे शहर को दहला दिया। इसके कुछ ही समय बाद सेना ने घोषणा कर दी कि उसने देश की कमान अपने हाथ में ले ली है। सेना ने चुनाव संबंधी सभी प्रक्रियाओं को तत्काल रोक दिया और देश की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद कर दीं। इस तरह गिनी-बिसाऊ में एक बार फिर सैन्य तख्तापलट हो गया।

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राष्ट्रपति भवन के आसपास तनाव

Guinea Bissau
तख्तापलट से हड़कंप

राष्ट्रपति भवन के आसपास अचानक गोलियों की आवाज सुनाई देने लगी। शहर के मुख्य इलाकों में सैनिकों की तैनाती कर दी गई और सड़कों पर बड़े-बड़े बैरिकेड लगा दिए गए। इस माहौल में कई लोग डर के कारण राजधानी छोड़ने लगे। पत्रकारों के अनुसार राष्ट्रपति परिसर का पूरा इलाका सेना की घेराबंदी में है और हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं।

राष्ट्रपति एम्बालो का पता नहीं

सबसे बड़ी चिंता मौजूदा राष्ट्रपति उमरो सिस्सोको एम्बालो को लेकर है। सेना के सत्ता संभालने के घंटों बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो सका कि वे सुरक्षित हैं या नहीं। राष्ट्रपति के लापता होने से देश में और अधिक अशांति फैल गई है। लोग यह समझ नहीं पा रहे कि राजनीतिक स्थिति अब किस दिशा में जाएगी।

चुनावी नतीजों से पहले टकराव

तख्तापलट से कुछ ही दिन पहले गिनी-बिसाऊ में राष्ट्रपति और संसद के चुनाव हुए थे। आधिकारिक नतीजे 27 नवंबर को आने वाले थे, लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपनी-अपनी जीत का दावा कर दिया था। यह स्थिति 2019 के चुनाव जैसी ही है, जब परिणाम को लेकर महीनों विवाद चला था। इस बार भी चुनावी प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही।

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य विपक्षी पार्टी PAIGC को चुनाव लड़ने से रोक दिया था। विपक्ष ने इसे राजनीतिक दबाव बताया। वहीं राष्ट्रपति एम्बालो का कार्यकाल फरवरी में समाप्त हो चुका था, लेकिन उन्होंने पद छोड़ने से इनकार कर दिया था। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर पहले से ही गंभीर सवाल उठ चुके थे।

गिनी-बिसाऊ की पुरानी समस्या

गिनी-बिसाऊ में यह पहली बार नहीं है जब सेना ने सत्ता संभाली हो। 1974 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से देश कई बार राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार हुआ है। अब तक चार बार सफल तख्तापलट और कई बार असफल कोशिशें हो चुकी हैं। यह घटनाएं इस बात की गवाही देती हैं कि यहां का राजनीतिक ढांचा बेहद कमजोर है।

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