Gujarat Bridge Collapse : बुधवार सुबह वडोदरा और आनंद को जोड़ने वाला 45 वर्षों पुराना महिसागर नदी पर स्थित गंभीरा पुल सुबह करीब 7:45 बजे धराशायी हो गया। इस दर्दनाक घटना में अभी तक 15 लोगों की जान चली गई है, जबकि 3–5 लोग लापता बताए जा रहे हैं। इसके संकेत मिलने पर पुलिस, NDRF और SDRF की टीमें करीब 4 किमी तक नदी में तलाशी अभियान चला रही हैं।
मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने 4 इंजीनियरों को निलंबित किया
मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल ने जांच रिपोर्ट पर आधारित अपनी पहली सख्त प्रतिक्रिया देते हुए सड़क एवं भवन विभाग के अधिशासी अभियंता एन.एम. नायकवाला, दो उप-अधिशासी अभियंता यू.सी. पटेल व आर.टी. पटेल तथा सहायक अभियंता जे.वी. शाह को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया। ये अधिकारी पुल के जीर्ण -शीर्ण हालात की जिम्मेदारी में सीधे तौर पर शामिल थे। सीएम ने हादसे की जाँच के लिए छह सदस्यों की उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की है। समिति में दो चीफ इंजीनियर और दो प्राइवेट पुल विशेषज्ञ शामिल हैं, जिन्हें यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई है कि वे महिसागर—गंभीरा पुल का समग्र निरीक्षण करें तथा पर्याप्त जाँच रिपोर्ट तैयार करें।
एनडीआरएफ व एसडीआरएफ तलाशी अभियानों में जुटे
गुजरात की आपदा प्रबंधन एजेंसियां एनडीआरएफ व एसडीआरएफ नदी में फंसे वाहनों को निकालने और लापता लोगों को खोजने के लिए सुबह से ही तलाशी अभियानों में जुटी हैं। दुर्घटना स्थल पर मौजूद पुल की संरचनात्मक असामान्यता इसके ढहने का कारण मानी जा रही है। मुख्यमंत्री ने राज्य के सभी पुलों का गहन और तत्काल निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत जो पुल कमजोर पाए जाएंगे, उनकी त्वरित मरम्मत व सख्त निरीक्षण शुरू होगा, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचा जा सके।
मोरबी पुल हादसे के बाद खुला राज
राज्य सरकार ने मोरबी पुल हादसे की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में कहा था कि 1,441 पुलों की स्थिति ‘अच्छी’ है और केवल 28 पुलों की मरम्मत चल रही है। लेकिन वडोदरा हादसे ने यह मिथक उजागर कर दिया कि क्या वाकई सरकार ने निरीक्षण का ठोस काम किया था? हाई कोर्ट द्वारा सरकार को आदेशित तंत्र तथा मापदंडों की स्पष्ट रूप से निगरानी किसी लिहाज़ से लागू नहीं दिखता। महिसागर पर बने पुल की आयु करीब 45 वर्ष है, जिसका निरीक्षण व रख-रखाव कार्य दशकों से पर्याप्त नहीं हो पाया। इसकी जर्जरता ही हादसे की वजह बताया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि नियमित रूप से संरचनात्मक परीक्षण, लोड—माप व रखरखाव लगातार नहीं किए गए, जिसका खामियाजा भारी बनकर सामने आया।
स्थानीय प्रशासन की सुस्ती पर सवाल
स्थानीय प्रशासन और पुल निरीक्षण टीम के बीच समन्वय की कमी भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। पुल को लेकर नियमित चेतावनी के बावजूद सरकारी निगरानी तंत्र निष्क्रिय साबित हुआ है। यह हादसा राज्य सरकार को पुलों के रखरखाव और क्षमता निर्धारण की जिम्मेदारी गंभीरता से पुनः लेने का यथार्थन राम बनता दिखता है। इन घटनाओं के प्रभाव में राज्य सरकार ने दोषियों को तुरंत सस्पेंड किया, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया व जांच रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद ही जिम्मेदार अधिकारियों व ठेकेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है। पुल निर्माण व रखरखाव में संलिप्त एजेंसियों की जवाबदेही तय होना आवश्यक है।
स्थानीय लोगों की चिंताएँ और प्रशासन से जवाब की उम्मीद
स्थानीय जनता पुल विफलता व हादसे में जीवन-जाने वालों पर भारी चिंता और क्षोभाव जुटा रही है। कई लोग प्रशासन की तरफ से निष्क्रियता, तय रिपोर्टों की अनुपस्थिति व दोषियों को बचाने की मनमानी कार्रवाई जैसे आरोप लगा रहे हैं। अब महत्वपूर्ण यह होगा कि सरकार स्थाई व सख्त सुधारों के साथ पुलों की निर्माण- निरीक्षण प्रक्रियाओं को सुधारती है या फिर यह हादसे का क्रम जारी रहता है। गुजरात में पुल हादसा क्षति देने वाला है, लेकिन यह सरकार और प्रशासन को पुल रखरखाव तंत्र में सुधार व जवाबदेही अधिक दृढ़ता से लागू करने का एक स्पष्ट संकेत है। हादसा कठोर संदेश देता है कि लापरवाही से बड़े नुकसान की संभावनाएं सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि सुरक्षा का भारी संकट बन जाती हैं।
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