Yusuf Pathan : गुजरात हाईकोर्ट ने पूर्व क्रिकेटर और वर्तमान तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद यूसुफ पठान के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाते हुए उन्हें अतिक्रमणकारी करार दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यूसुफ पठान ने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया है और अब उन्हें वह जमीन जल्द से जल्द खाली करनी होगी।
यह मामला लंबे समय से अदालत में विचाराधीन था, जिसमें यूसुफ पठान पर आरोप था कि उन्होंने अहमदाबाद स्थित एक बहुमूल्य सरकारी भूखंड पर अवैध निर्माण कर रखा है। इस संबंध में खुद यूसुफ पठान ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया था कि उनके पास उक्त जमीन के स्वामित्व से जुड़े पर्याप्त दस्तावेज हैं। हालांकि, कोर्ट ने उनके सभी दावों को खारिज करते हुए उन्हें “अतिक्रमणकारी” करार दिया।
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यूसुफ पठान द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज और दलीलें जमीन पर उनके अधिकार को प्रमाणित करने में असफल रहीं। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि किसी भी व्यक्ति, चाहे वह कितनी ही बड़ी हस्ती क्यों न हो, उसे कानून का पालन करना होगा और सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जमीन को जल्द खाली करने के आदेश
कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया है कि वे तत्काल प्रभाव से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करें और संबंधित जमीन को सरकारी रिकॉर्ड में पुनः दर्ज करें। इसके अलावा, यदि यूसुफ पठान तय समय सीमा में स्वयं जमीन खाली नहीं करते हैं, तो प्रशासन को बलपूर्वक अतिक्रमण हटाने की छूट दी गई है।
यूसुफ पठान की प्रतिक्रिया
अब तक यूसुफ पठान की ओर से इस फैसले पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, उनके वकीलों द्वारा अपील की संभावना को खुला रखा गया है। बताया जा रहा है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है, लेकिन फिलहाल गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को लागू करना अनिवार्य है।
राजनीतिक हलकों में हलचल
यूसुफ पठान वर्तमान में टीएमसी के राज्यसभा सांसद हैं। ऐसे में यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण बन गया है। विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को लेकर टीएमसी और यूसुफ पठान पर निशाना साधना शुरू कर दिया है।
गुजरात हाईकोर्ट का यह फैसला एक सशक्त संदेश है कि चाहे कोई भी व्यक्ति हो, कानून सबके लिए समान है। यूसुफ पठान जैसे लोकप्रिय और प्रभावशाली व्यक्तित्व को अतिक्रमणकारी करार देना इस बात का प्रमाण है कि न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता सर्वोपरि है।

