H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों भारत में काफी चीजों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। पहले भारत में 50 प्रतिशत टैरिफ ऐलान किया और अब वो उन्होंने H-1B वीजा से जुड़ी एक नई नीति पर हस्ताक्षर किया हैं, जिसमें वीजा के लिए अप्लाई करने वालों को $100,000 (लगभग 83 लाख रुपये) तक का शुल्क देना होगा। इस घोषणा के सामने आते ही भारत समेत कई राज्यों में चिंता का माहौल बन गया है, क्योंकि H-1B वीजा का सबसे ज्यादा उपयोग भारत करता है, खासकर आईटी और हेल्थ सेक्टर में।
डॉक्टरों को मिल सकती है राहत
हालांकि, इस फैसले के साथ एक राहत भरी खबर भी सामने आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिया है कि डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को इस शुल्क में छूट मिल सकती है। बता दें कि, ट्रंप ने 19 सितंबर को इस बात का खुलासा किया की कुछ विशेष वर्गों को भारी-भरकम शुल्क से छूट दी जा सकती है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता टेलर रोजर्स ने इस बात की पुष्टि की है कि कानून संभावित छूट की अनुमति देता है, जिसमें डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ को शामिल किया जा सकता है।
अमेरिका के अस्पतालों की H-1B वीजा पर निर्भरता
अमेरिका के कई बड़े अस्पताल जैसे मेयो क्लिनिक, क्लीवलैंड क्लिनिक और सेंट जूड हॉस्पिटल H-1B वीजा पर काफी निर्भर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, केवल मेयो क्लिनिक के पास 300 से ज्यादा H-1B वीजा हैं। इन संस्थानों में बड़ी संख्या में विदेशी डॉक्टर काम कर रहे हैं, जिनमें अधिकतर भारतीय होते हैं।
मेडिकल स्टाफ की कमी का डर

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य हेल्थ एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि अगर वीजा शुल्क में छूट नहीं दी गई, तो अमेरिका में डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ की भारी कमी हो सकती है। खासकर की गांव और दूरदराज के इलाकों में जहां पहले से ही मेडिकल सुविधाएं सीमित हैं, तो वहां यह स्थिति और भी खराब हो सकती है।
21 सितंबर के बाद दायर किए गए वीजा पर शुल्क
ट्रंप प्रशासन ने यह स्पष्ट किया है कि $100,000 का शुल्क केवल 21 सितंबर या उसके बाद दायर किए गए नए H-1B वीजा आवेदनों पर एकमुश्त (one-time) लागू होगा। यह कोई सालाना शुल्क नहीं है। इस फैसले का उद्देश्य अवैध प्रवास को नियंत्रित करना और अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता देना बताया गया है।
भारत-अमेरिका के रिश्तों पर असर
भारत और अमेरिका के बीच पहले से ही व्यापार और टैरिफ को लेकर तनातनी चल रही थी। अब H-1B वीजा की शर्तों में यह भारी बदलाव दोनों देशों के बीच एक और तनाव का कारण बन सकता है। हालांकि हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बीच बातचीत हुई है, जिससे इस मुद्दे के समाधान की उम्मीद बढ़ी है।
