Hindi Journalism Day 2025: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता को समाज के एक अहम हिस्से के रूप मे माना जाता है, मुख्य रूप से समाज को जागरुक करने का काम पत्रकार ही करता है. पत्रकारिता को सराहना देने के लिए हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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पत्रकारिता का इतिहास जानिए…
पत्रकारिता के इतिहास की बात करें तो वर्ष 1826 में 30 मई के दिन ही हिंदी का पहला अखबार उदन्त मार्तण्ड प्रकाषित किया गया था जिसके संपादक जुगल किशोर शुक्ला थे. इस अखबार का प्रकाशन कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में हुआ था. ये अखबार साप्ताहिक था और हर मंगलवार के दिन पाठकों तक पहुंचता था.
कई चुनौतियों का करना पड़ा सामना
उदन्त मार्तण्ड 1826 में प्रकाशित हिंदी का पहला समाचार पत्र था, जिसे पाठकों की कमी और ऊँचे डाक शुल्क जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार की उपेक्षा और आर्थिक तंगी के कारण यह अखबार केवल 79 अंक निकलने के बाद 4 दिसंबर 1827 को बंद हो गया। हालांकि इसका जीवन छोटा था, लेकिन इसने हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत की। बाद में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ‘कविवचन सुधा’ और ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ के ज़रिए इसे नई दिशा दी। फिर गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में ‘प्रताप’ अखबार शुरू किया, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।
जागरुक करने का किया प्रयास
हिंदी पत्रकारिता ने उम लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया जिनको अन्य भाषाएं नही आती थी. हिंदी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम रोल निभाया है। उदाहरण के लिए ‘उदन्त मार्तण्ड’ और बाद में ‘प्रताप’ जैसे अखबारों ने ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई। साथ ही सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, अशिक्षा और जातिगत भेदभाव के खिलाफ भी जागरूकता फैलाई।
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