Holika Dahan 2025: होली का पर्व भारतीय संस्कृति में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है, जो विशेष रूप से फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन आता है। इस दिन से पहले रात को होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है। होलिका दहन को लेकर कई मान्यताएँ और नियम हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण नियम है भद्रा काल। इस दौरान होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है। चलिए जानते हैं कि भद्रा कौन हैं और क्यों होलिका दहन के समय उनका साया अशुभ माना जाता है।
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होलिका दहन पर भद्रा का साया

होलिका दहन 2025 इस बार 13 मार्च को होगा और 14 मार्च को होली का पर्व मनाया जाएगा। होलिका दहन के दौरान भद्रा का साया पड़ने के कारण इसे कुछ धार्मिक नियमों के तहत निषेध किया जाता है। भद्रा काल को लेकर शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि इस समय शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। होलिका दहन जैसा महत्वपूर्ण कार्य भी भद्रा काल में करना अशुभ माना जाता है क्योंकि इस समय किए गए कार्यों से अच्छे परिणाम की प्राप्ति नहीं होती।
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कौन हैं भद्रा? (Who is Bhadra?)

भद्रा का उल्लेख सनातन शास्त्रों में विशेष रूप से मिलता है। भद्रा शनि देव की बहन और सूर्य देव की पुत्री मानी जाती हैं। उनके स्वभाव को क्रोधी बताया गया है, जो उन्हें एक शक्तिशाली और उग्र देवी के रूप में प्रस्तुत करता है। भद्रा का स्वभाव क्रोधी होने के कारण इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करना निषेध होता है।भद्रा का प्रभाव तब देखा जाता है जब वह अपने क्रोधी रूप में आ जाती हैं और इस समय किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से अनिष्ट का डर बना रहता है। इसलिए, होलिका दहन को भद्रा काल में करना धार्मिक दृष्टि से उचित नहीं माना जाता।
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होलिका दहन का सही समय

वैदिक पंचांग के अनुसार, भद्रा का समय विशेष रूप से ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। जब भद्रा का साया हो, तो इसे शुभ कामों के लिए अशुभ माना जाता है। इस समय में किए गए कार्यों का फल नकारात्मक हो सकता है, और यही कारण है कि होलिका दहन जैसे धार्मिक कार्यों के लिए भद्रा काल से बचने की सलाह दी जाती है।होलिका दहन का सही समय निर्धारित करने के लिए पंडितों और ज्योतिषियों से मार्गदर्शन लिया जाता है। इसलिए, होलिका दहन से पहले भद्रा काल को लेकर ध्यान रखना जरूरी है, ताकि पर्व को सही तरीके से मनाया जा सके और शुभ परिणाम प्राप्त हो।