Pakistan Leader Asks Help to PM Modi:पाकिस्तान के निर्वासित नेता और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक बेहद भावनात्मक अपील की है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान में उर्दू भाषी समुदाय यानी मुहाजिरों पर लगातार अत्याचार हो रहा है और उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है। उन्होंने पीएम मोदी से अनुरोध किया कि वे इस गंभीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाएं और मुहाजिरों को न्याय दिलाने में मदद करें।
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बंटवारे के बाद बने मुहाजिरों की दयनीय स्थिति
अल्ताफ हुसैन ने अपने बयान में बताया कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग भारत से पाकिस्तान गए थे। ये लोग उर्दू भाषी थे, जिन्हें ‘मुहाजिर’ कहा गया। पाकिस्तान में इन्हें अब तक बाहरी और दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह देखा जाता है।उनका आरोप है कि सरकार, प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा मुहाजिरों पर अत्याचार किए जा रहे हैं। उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जाता है, बेरोजगार किया जाता है और उनके साथ सामाजिक बहिष्कार जैसा व्यवहार किया जाता है।
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“प्रधानमंत्री मोदी ही आखिरी उम्मीद हैं”
हुसैन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही एकमात्र ऐसे वैश्विक नेता हैं, जिनसे वे मदद की उम्मीद कर सकते हैं। उन्होंने मोदी से अपील की कि वे मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए आगे आएं और पाकिस्तान में उर्दू भाषियों की दुर्दशा को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने रखें।उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर उठाए ताकि पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके और मुहाजिरों को न्याय मिल सके।
भारत-पाक तनाव के बीच आई अपील
यह अपील उस समय आई है जब हाल ही में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में फिर से तनाव गहरा गया है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पीओके में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन और मिसाइल हमलों की कोशिश की थी। इन घटनाओं ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सैन्य तनाव को और अधिक बढ़ा दिया है।
मानवाधिकारों की रक्षा की मांग
अल्ताफ हुसैन की यह अपील न केवल पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस प्रकार एक समुदाय अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपेक्षा कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह कोई राजनीतिक अपील नहीं है, बल्कि एक मानवाधिकार की पुकार है।

