Indira Colony Demolition: उत्तर-पश्चिम दिल्ली की इंदिरा कॉलोनी के हजारों निवासियों को उस समय बड़ी राहत मिली जब दिल्ली हाई कोर्ट ने शनिवार को होने वाले डिमोलिशन अभियान पर 31 जुलाई तक रोक लगा दी। कोर्ट ने साफ कहा कि इस मामले में जबरन बेदखली नहीं की जा सकती और मामले की गंभीरता को देखते हुए गहन जांच जरूरी है।यह निर्णय इंदिरा कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर उस याचिका के बाद आया, जिसमें नॉर्दर्न रेलवे द्वारा जारी 4 जुलाई का बेदखली नोटिस चुनौती दी गई थी। रेलवे ने इस कॉलोनी को अवैध कब्जा बताया था और हजारों परिवारों को हटने का फरमान जारी किया गया था।
न्यायालय का हस्तक्षेप
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, जब तक पूरे मामले की जांच नहीं होती, तब तक किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ या जबरन हटाने की कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने केंद्र और रेलवे से जवाब भी मांगा है।न्यायालय ने यह भी माना कि इस तरह की कार्यवाही यदि बिना पुनर्वास नीति के होती है, तो यह मानवाधिकारों और संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। कोर्ट ने साफ कहा कि 31 जुलाई तक स्थिति को यथावत रखा जाए।
Read more :Weather Update: देश के कई राज्यों में बारिश का कहर, मुंबई समेत अन्य राज्यों का जाने हाल…
आतिशी का हमला
इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष की नेता आतिशी ने इस कदम की तीखी आलोचना की। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:”चुनाव से पहले प्रधानमंत्री ने कहा था – ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’, लेकिन अब उन्हीं झुग्गियों पर बुलडोज़र चलाने की तैयारी हो रही है। यह गरीबों के साथ धोखा है।”आतिशी ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई भाजपा सरकार की गरीब विरोधी नीति को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि इंदिरा कॉलोनी में वर्षों से रहने वाले लोग मेहनतकश मजदूर हैं, और उन्हें बिना विकल्प दिए हटाना अमानवीय है।
Read more :Weather Update: देश के कई राज्यों में बारिश का कहर, मुंबई समेत अन्य राज्यों का जाने हाल…
पुनर्वास के बिना हटाना अन्यायपूर्ण
इंदिरा कॉलोनी में रहने वाले हजारों परिवारों ने भी इस बेदखली के खिलाफ आवाज उठाई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं और उन्होंने कई बार आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज भी बनाए हैं।रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि बिना किसी वैकल्पिक आवास या पुनर्वास की व्यवस्था किए लोगों को हटाना पूरी तरह न्याय के खिलाफ है।

