Jagannath Rath Yatra 2025: उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिंदू धर्म के चार प्रमुख धामों में से एक है। यहां हर साल आषाढ़ माह में भव्य रथयात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के विशाल रथ निकाले जाते हैं।
इस साल रथयात्रा का आयोजन 27 जून दिन शुक्रवार से हो चुका है। मगर इस भव्य रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ की पत्नी रुक्मिणी का रथ क्यों नहीं होता है, इसके पीछे एक रोचक और भावनात्मक कथा प्रचलित है, जो भगवान श्रीकृष्ण, देवी राधा और रुक्मिणी से जुड़ी है, तो आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं।
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रथयात्रा से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने महल में विश्राम कर रहे थे। नींद की अवस्था में उनके मुख से बार बार राधा का नाम निकलने लगा। यह बा रुक्मिणी ने सुन ली और वह इससे आहत हो गईं। अगली सुबह उन्होंने यह बात अन्य रानियों को बताई। सभी रानियां यह सोचने लगीं कि हम सभी की सेवा और प्रेम के बावजूद श्रीकृष्ण के मन में आज भी राधा का वास होता है।
राधा रानी और श्रीकृष्ण के संबंध को समझने के लिए रानियां माता रोहिणी के पास गईं। रानियों के अनुरोध पर माता रोहिणी ने कहा, “मैं तुम्हें श्रीकृष्ण और राधा के बीच की लीला सुनाऊंगी, लेकिन इस दौरान कोई कमरे में प्रवेश न करे।” रुक्मिणी ने सहमति जताई और सुभद्रा को द्वार पर निगरानी के लिए खड़ा कर दिया।
भाव विभोर हुए भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा
जब माता रोहिणी राधा कृष्ण की कथा सुना रही थीं, उसी वक्त बलराम और श्रीकृष्ण वहां पहुंचे। सुभद्रा ने उन्हें कमरे में जाने से रोक, लेकिन रोहिणी की बातें बाहर तक सुनाई दे रही थी। राधा के प्रेम और भक्ति को सुनहर भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा इतने भाव विभोग हो गए कि उनके शरीर का आकार बदलने लगा। उनके हाथ पैर अदृश्य हो गए और उनके शरीर केवल धड़ जैसे रह गए। श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र भी पिघलकर लंबा हो गया।
अलौकिक रूप की स्थापना
उसी वक्त देवर्षि नारद वहां आए और इस अलौकिक दृश्य को देखकर उन्होंने प्रार्थना की, “हे प्रभु! इस अद्वितीय रूप में आप कलियुग में भी अपने भक्तों को दर्शन दें।” श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा ने यह वरदान स्वीकार कर लिया। तभी से पुरी मंदिर में तीनों की अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है और इन्हीं रूपों में रथयात्रा निकाली जाती है।
रथ यात्रा में रुक्मिणी की अनुपस्थिति की वजह
इस दिव्य प्रसंग में रुक्मिणी जी का कोई उल्लेख नहीं आता, इसलिए रथयात्रा की परंपरा में भी रुक्मिणी को शामिल नही किया जाता। यही कारण है कि हर साल होने वाली इस भव्य यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा का रथ तो निकलता है मगर रुक्मिणी का रथ नहीं होता।

